22वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1969

भारतीय संविधान का 22वां संशोधन अधिनियम, 1969, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के प्रशासनिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह संशोधन मुख्य रूप से असम राज्य के भीतर कुछ जनजातीय क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के उद्देश्य से लाया गया था।

 इसने संसद को असम के भीतर एक 'स्वायत्त राज्य' (Autonomous State) बनाने के लिए अधिकृत किया, जिसने अंततः मेघालय के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। यह संशोधन भारतीय संघवाद के लचीलेपन और क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करने की संवैधानिक क्षमता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

                                                                     

22वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1969



पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Background & Context)

इस संशोधन की जड़ें स्वतंत्रता के बाद से ही असम के पहाड़ी जनजातीय क्षेत्रों की विशिष्ट राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की मांग में थीं।

  • विशिष्ट पहचान की मांग: असम के पहाड़ी जिले, विशेष रूप से गारो, खासी और जयंतिया हिल्स, भाषाई और सांस्कृतिक रूप से असम के मैदानी इलाकों से भिन्न थे। 1950 के दशक से ही, इन क्षेत्रों के नेता अपनी विशिष्ट पहचान और हितों की रक्षा के लिए अधिक राजनीतिक स्वायत्तता की मांग कर रहे थे।
  • राज्य पुनर्गठन आयोग (1956): राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganization Commission) ने भी इन क्षेत्रों की विशिष्ट स्थिति को पहचाना था, लेकिन एक अलग राज्य के बजाय असम के भीतर ही स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils) के माध्यम से समाधान सुझाया, जो छठी अनुसूची के तहत प्रदान किया गया था।
  • APHLC का गठन: 1960 में जब असम सरकार ने असमिया को राज्य की एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने का प्रयास किया, तो पहाड़ी क्षेत्रों में इसका तीव्र विरोध हुआ। इसी के परिणामस्वरूप 'ऑल पार्टी हिल लीडर्स कॉन्फ्रेंस' (APHLC) का गठन हुआ, जिसने एक अलग 'हिल स्टेट' (पहाड़ी राज्य) की मांग को तेज कर दिया।
  • असफल समाधान: केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाओं, जैसे 'स्कॉटिश पैटर्न' या 'नेहरू योजना', के माध्यम से स्वायत्तता देने की कोशिश की, लेकिन ये APHLC को स्वीकार्य नहीं थीं। छठी अनुसूची के प्रावधान भी इन जनजातीय समुदायों की राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने में अपर्याप्त साबित हो रहे थे।

इन परिस्थितियों में, केंद्र सरकार ने एक मध्य मार्ग निकाला: एक पूर्ण अलग राज्य बनाने के बजाय, असम राज्य के भीतर ही एक 'स्वायत्त राज्य' (या उप-राज्य) का निर्माण किया जाए, जिसके पास अपना विधानमंडल और मंत्रिपरिषद हो। इस अनूठी व्यवस्था को संवैधानिक आधार देने के लिए 22वें संशोधन की आवश्यकता पड़ी।

प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया (Proposal & Passage Process)

इस संशोधन को लागू करने की प्रक्रिया तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा शुरू की गई थी।

  • विधेयक प्रस्तुति: 'संविधान (बाईसवां संशोधन) विधेयक, 1969' को 10 अप्रैल, 1969 को लोकसभा में पेश किया गया था।
  • लोकसभा: यह विधेयक 15 अप्रैल, 1969 को लोकसभा द्वारा पारित किया गया।
  • राज्यसभा: राज्यसभा ने इस विधेयक को 30 अप्रैल, 1969 को अपनी मंजूरी दी।
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति: इस विधेयक को 25 सितंबर, 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरि (V. V. Giri) की स्वीकृति प्राप्त हुई।
  • लागू होना: राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ ही यह 'संविधान (बाईसवां संशोधन) अधिनियम, 1969' के रूप में लागू हो गया।

संशोधन के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions of the Amendment)

यह लेख का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। 22वें संशोधन ने भारतीय संविधान में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:

1. नया अनुच्छेद 244A (Insertion of Article 244A)

यह इस संशोधन का सबसे मुख्य प्रावधान था। इसने संसद को कानून द्वारा असम के कुछ निर्दिष्ट जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर एक 'स्वायत्त राज्य' (autonomous state) बनाने का अधिकार दिया।

  • स्वायत्त राज्य का गठन: संसद को यह शक्ति दी गई कि वह इन क्षेत्रों के लिए एक अलग निकाय का निर्माण कर सकती है।
  • स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद: अनुच्छेद 244A ने यह भी प्रावधान किया कि इस स्वायत्त राज्य के लिए (क) एक स्थानीय विधानमंडल (Legislature) या (ख) एक मंत्रिपरिषद (Council of Ministers), या दोनों का गठन किया जा सकता है।
  • शक्तियों का निर्धारण: संसद को इस विधानमंडल और मंत्रिपरिषद की संरचना, शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करने का पूरा अधिकार दिया गया। इसमें यह भी शामिल था कि यह नया विधानमंडल राज्य सूची या समवर्ती सूची के किन विषयों पर कानून बना सकेगा।
  • कानूनी स्पष्टता: अनुच्छेद ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार बनाए गए कानून को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा, भले ही उसमें संविधान में संशोधन करने वाले प्रावधान क्यों न हों।

2. अनुच्छेद 275 में संशोधन (Amendment to Article 275)

अनुच्छेद 275 राज्यों को केंद्र से सहायता अनुदान (grants-in-aid) से संबंधित है।

  • नया खंड (1A): इस संशोधन ने अनुच्छेद 275 में एक नया खंड (1A) जोड़ा।
  • वित्तीय प्रावधान: यह सुनिश्चित करने के लिए कि नए स्वायत्त राज्य के पास अपने प्रशासन के लिए पर्याप्त धन हो, यह प्रावधान किया गया कि केंद्र सरकार द्वारा असम राज्य को दिए जाने वाले किसी भी अनुदान में से स्वायत्त राज्य के लिए भी अलग से अनुदान (भारत की संचित निधि से) दिया जाएगा।

3. नया अनुच्छेद 371B (Insertion of Article 371B)

यह अनुच्छेद असम राज्य की विधानसभा के संबंध में एक विशेष प्रावधान करने के लिए जोड़ा गया था।

  • असम विधानसभा समिति: राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह असम की विधानसभा में एक समिति का गठन कर सकते हैं।
  • सदस्यों का चयन: इस समिति में वे सदस्य शामिल होंगे जो छठी अनुसूची के पैरा 20 से जुड़े टेबल के भाग 'A' में निर्दिष्ट जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए हैं, और साथ ही असम विधानसभा के अन्य सदस्य (जैसा कि राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें) भी शामिल हो सकते हैं।
  • उद्देश्य: इस समिति का मुख्य कार्य इन जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन और विकास से संबंधित मामलों को देखना था।

उद्देश्य और लक्ष्य (Objectives and Legislative Intent)

इस संशोधन के पीछे सरकार का विधायी इरादा स्पष्ट और रणनीतिक था:

  • राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति: इसका प्राथमिक उद्देश्य असम के पहाड़ी जनजातीय क्षेत्रों (विशेष रूप से गारो, खासी और जयंतिया हिल्स) के लोगों की लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक आकांक्षाओं और स्व-शासन की मांग को पूरा करना था।
  • अलगाववाद को रोकना: एक पूर्ण अलग राज्य की मांग जोर पकड़ रही थी। यह संशोधन एक मध्य मार्ग था, जो अलगाव की भावना को कम करने और उन्हें भारतीय संघ के भीतर एक सम्मानित स्थान देने का प्रयास था।
  • 'राज्य के भीतर राज्य' मॉडल: यह भारतीय संघवाद में एक नया प्रयोग था। इसका लक्ष्य असम की क्षेत्रीय अखंडता को तुरंत भंग किए बिना, एक 'राज्य के भीतर राज्य' (a state within a state) का अनूठा मॉडल बनाना था।
  • प्रशासनिक सुगमता: यह माना गया कि एक स्थानीय विधानमंडल और मंत्रिपरिषद इन जनजातीय क्षेत्रों की विशिष्ट विकासात्मक आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से समझ और संबोधित कर सकती है।

प्रभाव और परिणाम (Impact and Outcomes)

22वें संविधान संशोधन का प्रभाव तत्काल और दूरगामी दोनों था:

1. तत्काल परिणाम: मेघालय का गठन

  • 22वें संशोधन द्वारा मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए, संसद ने 'असम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम, 1969' [Assam Reorganisation (Meghalaya) Act, 1969] पारित किया।
  • इस अधिनियम के परिणामस्वरूप, 2 अप्रैल, 1970 को असम राज्य के भीतर 'मेघालय' नामक एक स्वायत्त राज्य अस्तित्व में आया।
  • मेघालय को अपना स्वयं का विधानमंडल और मंत्रिपरिषद प्राप्त हुआ, जिसके पास राज्य सूची के कई विषयों पर कानून बनाने का अधिकार था।
  • भारत में राज्यों की सीमाओं में बदलाव और पुनर्गठन की प्रक्रिया 1956 से ही चल रही है, जिसकी नींव 7वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा रखी गई थी। इसी कड़ी में, 1969 में 22वें संशोधन के माध्यम से असम के पुनर्गठन की आवश्यकता महसूस हुई।

2. दीर्घकालिक परिणाम: पूर्ण राज्य का दर्जा

  • 'राज्य के भीतर राज्य' का यह प्रयोग एक अल्पकालिक समाधान साबित हुआ। मेघालय के नेताओं की आकांक्षाएं इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुईं और वे पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग करते रहे।
  • केंद्र सरकार ने जल्द ही इस आवश्यकता को महसूस किया।
  • इसके परिणामस्वरूप, संसद ने 'उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971' [North-Eastern Areas (Reorganisation) Act, 1971] पारित किया।
  • इस अधिनियम के तहत, 21 जनवरी, 1972 को मेघालय को एक पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया और उसे असम से अलग कर दिया गया। इसी अधिनियम ने मणिपुर और त्रिपुरा को भी पूर्ण राज्य का दर्जा दिया।
  • मेघालय को असम से अलग करके स्वायत्तता देना कोई पहली घटना नहीं थी। इससे पहले भी असम के ही कुछ क्षेत्रों को अलग करके 13वें संविधान संशोधन, 1962 के तहत नागालैंड राज्य का निर्माण किया गया था। 22वां संशोधन भी इसी दिशा में अगला कदम था।

इस प्रकार, 22वां संशोधन मेघालय के पूर्ण राज्य बनने की दिशा में पहला और सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक कदम था।

न्यायिक व्याख्या, समीक्षा और आलोचना (Judicial Review, Interpretation & Criticism)

22वां संविधान संशोधन न्यायिक रूप से बहुत विवादास्पद नहीं रहा, क्योंकि यह मुख्य रूप से एक राजनीतिक और प्रशासनिक पुनर्गठन था।

  • न्यायिक समीक्षा: इस संशोधन को किसी बड़ी न्यायिक चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। यह संसद की संविधान संशोधन की शक्ति के भीतर माना गया और इसने संविधान के 'मूल ढांचे' (Basic Structure) के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं किया (हालांकि 'मूल ढांचा' सिद्धांत 1973 में केशवानंद भारती मामले में स्पष्ट रूप से स्थापित हुआ)।
  • आलोचना: कुछ आलोचकों ने 'राज्य के भीतर राज्य' के इस मॉडल को एक जटिल और अव्यावहारिक व्यवस्था माना। उनका तर्क था कि शक्तियों का यह दोहराव (असम सरकार और मेघालय की स्वायत्त सरकार के बीच) प्रशासनिक भ्रम पैदा करेगा।
  • राजनीतिक दृष्टिकोण: कुछ लोगों ने इसे असम के "बाल्कनीकरण" (Balkanization) या विखंडन की शुरुआत के रूप में देखा, क्योंकि इसके बाद उत्तर-पूर्व में कई और नए राज्यों की मांग उठी। हालांकि, समर्थकों ने इसे क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करने का एक परिपक्व और लोकतांत्रिक तरीका माना।

ऐतिहासिक महत्व (Historical Significance)

भारत के संवैधानिक विकास में 22वें संशोधन का एक विशिष्ट स्थान है:

  • संवैधानिक लचीलापन: यह संशोधन भारतीय संविधान के अपार लचीलेपन को दर्शाता है, जो देश की विविधता और जटिल क्षेत्रीय मांगों को समायोजित करने के लिए अनूठे समाधान गढ़ सकता है।
  • संघवाद का नया मॉडल: इसने 'स्वायत्त राज्य' का एक अनूठा संघीय मॉडल पेश किया, जो भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के लिए नया था।
  • मेघालय के गठन का आधार: यह संशोधन मेघालय राज्य के जन्म के लिए संवैधानिक आधारशिला बना। इसने एक शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से एक प्रमुख राजनीतिक मांग को पूरा किया।
  • उत्तर-पूर्व के लिए मिसाल: इसने उत्तर-पूर्वी भारत की विशिष्ट जनजातीय और सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देने और उनके लिए विशेष प्रशासनिक प्रावधान करने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत किया।

सारांश तालिका (Quick Summary Table)

शीर्षक विवरण
संशोधन संख्या 22वां संविधान संशोधन अधिनियम
वर्ष 1969
लागू होने की तिथि 25 सितंबर, 1969
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी
राष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरि
मुख्य उद्देश्य संसद को असम राज्य के भीतर कुछ जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर एक 'स्वायत्त राज्य' (Autonomous State) बनाने का अधिकार देना।
प्रमुख बदलाव नया अनुच्छेद 244A और अनुच्छेद 371B जोड़ा गया।
अनुच्छेद 275 में संशोधन किया गया।

निष्कर्ष (Conclusion)

संविधान का 22वां संशोधन अधिनियम, 1969, भारतीय राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण और व्यवहारिक कदम था। इसने उत्तर-पूर्व भारत की जटिल राजनीतिक और जातीय मांगों को बल प्रयोग के बजाय संवैधानिक संवाद और लचीलेपन के माध्यम से संबोधित किया।

 हालांकि 'राज्य के भीतर राज्य' का यह प्रयोग अल्पकालिक रहा, लेकिन यह मेघालय के एक पूर्ण और शांतिपूर्ण राज्य के रूप में उदय होने की प्रक्रिया में एक अनिवार्य पड़ाव साबित हुआ। यह संशोधन आज भी भारत के सहकारी संघवाद और विविधता को समायोजित करने की उसकी अनूठी क्षमता का प्रतीक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: 22वां संविधान संशोधन कब पारित हुआ था?
उत्तर: 22वां संविधान संशोधन अधिनियम 25 सितंबर, 1969 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद पारित (लागू) हुआ।

प्रश्न 2: 22वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: इसका मुख्य उद्देश्य संसद को असम राज्य के भीतर कुछ जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर एक 'स्वायत्त राज्य' (Autonomous State) बनाने का अधिकार देना था, जिसने बाद में मेघालय का रूप लिया।

प्रश्न 3: 22वें संशोधन द्वारा कौन से नए अनुच्छेद जोड़े गए?
उत्तर: इस संशोधन द्वारा मुख्य रूप से दो नए अनुच्छेद जोड़े गए: अनुच्छेद 244A (स्वायत्त राज्य के गठन से संबंधित) और अनुच्छेद 371B (असम विधानसभा में जनजातीय क्षेत्रों के लिए समिति से संबंधित)।

प्रश्न 4: 22वें संशोधन के समय भारत की प्रधानमंत्री कौन थीं?
उत्तर: 1969 में 22वें संशोधन के समय भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं।

प्रश्न 5: क्या 22वें संशोधन ने ही मेघालय को पूर्ण राज्य बनाया था?
उत्तर: नहीं, 22वें संशोधन ने मेघालय को 1970 में केवल एक 'स्वायत्त राज्य' (असम के भीतर) बनाया था। मेघालय को 'पूर्ण राज्य' का दर्जा 1972 में 'उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971' के तहत मिला। 22वां संशोधन इस प्रक्रिया का पहला कदम था।

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