7वां संविधान संशोधन | 7th Constitutional Amendment

1. 🇮🇳 परिचय (Introduction)

भारतीय संविधान का 7वां संशोधन अधिनियम, 1956 (7th Constitutional Amendment Act, 1956) आधुनिक भारत के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक घटनाओं में से एक है। यदि आज हम भारत का मानचित्र (Map) देखते हैं, तो उसका श्रेय इसी संशोधन को जाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 (States Reorganisation Act, 1956) को संवैधानिक वैधता प्रदान करना था।

1956 से पहले, भारत के राज्यों को अलग-अलग श्रेणियों (Class A, B, C, D) में बांटा गया था, जो प्रशासनिक रूप से जटिल और भेदभावपूर्ण था। 7वें संशोधन ने इस पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर दिया और पहली बार भाषाई आधार (Linguistic Basis) पर राज्यों का गठन किया। इसने न केवल भारत के भूगोल को बदला, बल्कि केंद्र-राज्य संबंधों, उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार और राज्यपालों की शक्तियों में भी व्यापक बदलाव किए।

                                               

भारतीय संविधान का 7वां संशोधन | 7th Amendment of Indian Constitution

               



2. 🟧 पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ

7वें संशोधन की आवश्यकता को समझने के लिए हमें 1950 के दशक के भारत की राजनीतिक स्थिति को समझना होगा। आजादी के बाद, भारत में राज्यों का एकीकरण एक बड़ी चुनौती थी। सरदार पटेल ने रियासतों को भारत में मिलाया, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने की ही थी।

1950 में राज्यों का वर्गीकरण (ABCD System)

मूल संविधान में भारत के राज्यों को चार श्रेणियों (Categories) में बांटा गया था, जिसे 'ABCD सिस्टम' कहा जाता था:

  • भाग 'क' (Part A): ये पूर्व ब्रिटिश प्रांत थे, जहाँ गवर्नर का शासन था (जैसे बॉम्बे, मद्रास, बिहार)।
  • भाग 'ख' (Part B): ये बड़ी रियासतें थीं, जहाँ विधानमंडल के साथ 'राजप्रमुख' का शासन था (जैसे हैदराबाद, मैसूर)।
  • भाग 'ग' (Part C): ये छोटी रियासतें थीं, जिनका प्रशासन मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner) द्वारा किया जाता था (जैसे दिल्ली, अजमेर)।
  • भाग 'घ' (Part D): इसमें केवल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल था।

भाषाई राज्यों की मांग

दक्षिण भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग तेज हो रही थी। 1952 में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्रीरामुलु (Potti Sriramulu) ने तेलुगु भाषी लोगों के लिए अलग आंध्र प्रदेश राज्य की मांग करते हुए 56 दिनों का आमरण अनशन किया और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने पूरे देश में एक जन-आंदोलन छेड़ दिया, जिससे सरकार को भाषाई आधार पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।


3. 🟨 फजल अली आयोग और राज्य पुनर्गठन

बढ़ते दबाव के बीच, भारत सरकार ने दिसंबर 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission - SRC) का गठन किया। इसके अध्यक्ष फजल अली थे और अन्य दो सदस्य के.एम. पणिक्कर और एच.एन. कुंजरू थे।

आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और सिफारिश की कि:

  • राज्यों के चार-स्तरीय (ABCD) वर्गीकरण को समाप्त किया जाए।
  • राजप्रमुख के पद को समाप्त किया जाए।
  • भाषाई आधार पर 16 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाएं (हालांकि सरकार ने इसे थोड़ा संशोधित किया)।

इन सिफारिशों को लागू करने के लिए ही 7वां संविधान संशोधन अधिनियम लाया गया।


4. 🟩 प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया

यह संशोधन विधेयक भारतीय संसद के इतिहास में सबसे व्यापक बहसों में से एक था, क्योंकि यह सीधे तौर पर देश के नक्शे को बदल रहा था।

  • संसद में प्रस्तुति: राज्य पुनर्गठन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक 1956 में पेश किए गए।
  • पारित होना: लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने इसे व्यापक बहुमत से पारित किया। चूंकि यह संशोधन संविधान के संघीय ढांचे (Federal Structure) को प्रभावित करता था, इसलिए इसे अनुच्छेद 368 के तहत कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं के अनुसमर्थन (Ratification) की भी आवश्यकता थी।
  • लागू होना: राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की स्वीकृति के बाद, यह अधिनियम 1 नवंबर 1956 को प्रभाव में आया। इसी तारीख को कई नए राज्यों का स्थापना दिवस मनाया जाता है।

5. 🟦 संशोधन के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions)

7वें संशोधन ने संविधान के कई अनुच्छेदों और अनुसूचियों में भारी बदलाव किए। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

1. राज्यों के वर्गीकरण की समाप्ति और नए राज्य

इस संशोधन ने संविधान के भाग 7 (Part VII) को निरस्त कर दिया, जो भाग 'ख' (Part B) राज्यों से संबंधित था। इसने भाग 'क', 'ख', 'ग' और 'घ' के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया। इसके स्थान पर केवल दो श्रेणियां बनाई गईं:

  1. राज्य (States)
  2. केंद्र शासित प्रदेश (Union Territories)

इसके तहत 1 नवंबर 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आए।

2. एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल (अनुच्छेद 153)

मूल संविधान में यह प्रावधान था कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। 7वें संशोधन ने अनुच्छेद 153 में एक परंतुक (proviso) जोड़ा, जिससे एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। यह प्रशासनिक सुविधा और खर्च कम करने के लिए किया गया था।

3. साझा उच्च न्यायालय (Common High Court)

इसने संसद को यह अधिकार दिया कि वह दो या दो से अधिक राज्यों, या एक राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक ही साझा उच्च न्यायालय (Common High Court) स्थापित कर सकती है। (उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट, गुवाहाटी हाई कोर्ट)।

4. भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी (अनुच्छेद 350B)

भाषाई राज्यों के गठन के बाद, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 350B जोड़ा गया। इसके तहत राष्ट्रपति द्वारा एक 'भाषाई अल्पसंख्यक अधिकारी' (Special Officer for Linguistic Minorities) की नियुक्ति का प्रावधान किया गया, जो भाषाई अल्पसंख्यकों के रक्षोपायों की जांच करेगा।


6. 🟧 उद्देश्य और लक्ष्य (Objectives)

इस संशोधन के पीछे सरकार के स्पष्ट उद्देश्य थे:

  • राष्ट्रीय एकीकरण: राज्यों की कृत्रिम सीमाओं को हटाकर उन्हें भाषा और संस्कृति के आधार पर पुनर्गठित करना ताकि जन-असंतोष कम हो और राष्ट्रीय एकता मजबूत हो।
  • प्रशासनिक सुविधा: छोटे और अव्यवहारिक राज्यों (रियासतों) को बड़े राज्यों में मिलाना ताकि प्रशासन चलाना आसान और किफायती हो।
  • भेदभाव की समाप्ति: 'पार्ट बी' और 'पार्ट सी' राज्यों के नागरिकों को भी वही संवैधानिक अधिकार और दर्जा देना जो 'पार्ट ए' राज्यों के नागरिकों को प्राप्त था।

7. 🟨 प्रभाव और परिणाम (Impact and Outcomes)

7वें संशोधन के परिणाम दूरगामी थे:

  1. नए भारत का मानचित्र: केरल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे आधुनिक राज्यों का स्वरूप इसी संशोधन से निर्धारित हुआ। हैदराबाद जैसी बड़ी रियासतें विभाजित होकर पड़ोसी राज्यों में मिल गईं।
  2. क्षेत्रीय राजनीति का उदय: भाषाई राज्यों के गठन ने क्षेत्रीय दलों और नेताओं को उभरने का मौका दिया।
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भी प्रशासन की नई व्यवस्था बनाई गई, जिससे वहां के लोगों को बेहतर प्रतिनिधित्व मिला।

8. 🟩 न्यायिक व्याख्या और आलोचना

यद्यपि 7वां संशोधन एक बड़ी सफलता थी, लेकिन यह आलोचना से परे नहीं था।

संसद की शक्ति (अनुच्छेद 3)

इस संशोधन के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने बेरूबारी यूनियन मामले (1960) में स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 3 के तहत संसद को राज्यों की सीमाओं को बदलने का अधिकार तो है, लेकिन भारतीय क्षेत्र को किसी विदेशी देश को सौंपने का अधिकार साधारण कानून से नहीं, बल्कि अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन द्वारा ही संभव है। 7वें संशोधन ने आंतरिक सीमाओं को बदलने की संसद की शक्ति को और अधिक सुदृढ़ किया।

आलोचना

  • भाषावाद का खतरा: आलोचकों का मानना था कि भाषा के आधार पर राज्य बनाने से देश में 'उप-राष्ट्रवाद' (Sub-nationalism) पनपेगा और एकता कमजोर होगी। हालांकि, समय ने साबित किया कि इससे भारत की एकता और मजबूत हुई।
  • असमान विकास: कुछ छोटे राज्यों को बड़े राज्यों में मिलाने से कुछ क्षेत्रों का विकास धीमा हो गया, जिसके कारण बाद में फिर से नए राज्यों (जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड) की मांग उठी।

9. 🟦 ऐतिहासिक महत्व (Historical Significance)

7वें संशोधन का महत्व इस तथ्य में निहित है कि इसने भारत को एक सच्चे संघ (True Union) में बदल दिया। इसने:

  • ब्रिटिश काल की 'फूट डालो और राज करो' की विरासत को प्रशासनिक मानचित्र से मिटा दिया।
  • रियासतों के बचे-खुचे विशेषाधिकारों (जैसे राजप्रमुख पद) को समाप्त कर गणतंत्र को मजबूत किया।
  • भविष्य के सभी राज्य पुनर्गठनों के लिए एक संवैधानिक आधार तैयार किया।

10. 🟧 सारांश तालिका (Quick Summary Table)

शीर्षक विवरण
संशोधन संख्या 7वां संविधान संशोधन अधिनियम
वर्ष 1956
लागू होने की तिथि 1 नवंबर 1956
प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
मुख्य उद्देश्य राज्यों का पुनर्गठन और श्रेणी (A, B, C, D) का उन्मूलन।
प्रमुख बदलाव 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।

📜 प्रमुख संशोधन और ऐतिहासिक संधियाँ

11. 🟩 निष्कर्ष (Conclusion)

7वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1956, भारत के संवैधानिक इतिहास का एक निर्णायक मोड़ था। इसने भारत की विविधता को स्वीकार करते हुए उसे एक मजबूत प्रशासनिक ढांचे में पिरोया। यह संशोधन इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संविधान एक जड़ दस्तावेज नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्था है जो जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप खुद को बदलने की क्षमता रखता है। आज का एकीकृत भारत इसी संशोधन की नींव पर खड़ा है।


12. 🟦 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs – SEO Booster Section)

1. 7वां संविधान संशोधन कब लागू हुआ था?

7वां संविधान संशोधन अधिनियम 1 नवंबर 1956 को लागू हुआ था।

2. 7वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य क्या था?

इसका मुख्य उद्देश्य राज्यों के A, B, C, D वर्गीकरण को समाप्त करना और भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करना था।

3. 1956 के संशोधन के बाद भारत में कितने राज्य बने?

इस संशोधन के बाद भारत में 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश (UTs) बनाए गए।

4. किस आयोग की सिफारिश पर 7वां संशोधन लाया गया?

यह संशोधन फजल अली आयोग (राज्य पुनर्गठन आयोग) की सिफारिशों को लागू करने के लिए लाया गया था।

5. क्या एक राज्यपाल दो राज्यों का राज्यपाल बन सकता है?

हाँ, 7वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 153 में बदलाव किया गया, जिससे एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।

6. 7वें संशोधन द्वारा संविधान के किस भाग को हटाया गया?

इस संशोधन द्वारा संविधान के भाग 7 (Part VII) को पूरी तरह से हटा (Repeal) दिया गया।

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