भारतीय संविधान (Constitution of India) न केवल देश का सर्वोच्च कानून है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा भी है। यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें अनेक देशों के सर्वोत्तम संवैधानिक तत्वों को भारतीय परिवेश के अनुसार सम्मिलित किया गया है। इसका निर्माण स्वतंत्र भारत की विविधता, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए किया गया।
26 जनवरी 1950 को लागू हुआ यह संविधान भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है। इस विस्तृत लेख में हम भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं, इसकी संरचना और इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
📚 अनुक्रमणिका (Table of Contents)
- 👉 सबसे लंबा लिखित संविधान
- 👉 विभिन्न स्रोतों से विहित
- 👉 नम्यता और अनम्यता का समन्वय
- 👉 एकात्मक झुकाव के साथ संघीय व्यवस्था
- 👉 सरकार का संसदीय स्वरूप
- 👉 मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
- 👉 राज्य के नीति-निदेशक तत्व (DPSP)
- 👉 मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)
- 👉 एक धर्मनिरपेक्ष राज्य
- 👉 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
- 👉 एकल नागरिकता
- 👉 स्वतंत्र और एकीकृत न्यायपालिका
- 👉 आपातकालीन प्रावधान
- 👉 त्रि-स्तरीय सरकार
- 👉 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. सबसे लंबा लिखित संविधान
भारत का संविधान विश्व का सबसे विस्तृत और सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसके विशाल होने के कई कारण हैं, जैसे भारत का भौगोलिक विस्तार, विविधता, और केंद्र तथा राज्यों के लिए एक ही संविधान का होना।
मूल रूप से (1949 में), इसमें एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ (अब 12) थीं। वर्तमान में, विभिन्न संशोधनों के बाद, इसमें लगभग 470 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं। इसमें न केवल शासन के मौलिक सिद्धांतों का वर्णन है, बल्कि प्रशासनिक प्रावधानों का भी विस्तृत ब्यौरा दिया गया है ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार की संवैधानिक अस्पष्टता न रहे।
2. विभिन्न स्रोतों से विहित (Drawn from Various Sources)
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने गर्व के साथ कहा था कि भारत के संविधान का निर्माण "विश्व के ज्ञात संविधानों को छानने" के बाद किया गया है। इसमें देशी और विदेशी दोनों स्रोतों का मिश्रण है:
- भारत शासन अधिनियम 1935: संविधान का एक बड़ा हिस्सा (जैसे संघीय ढांचा, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका) इसी अधिनियम से लिया गया है।
- ब्रिटेन: संसदीय शासन प्रणाली, विधि का शासन, एकल नागरिकता।
- अमेरिका: मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक पुनरावलोकन।
- आयरलैंड: राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP)।
- कनाडा: सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था।
3. नम्यता और अनम्यता का समन्वय (Rigidity and Flexibility)
संविधान को संशोधन की प्रक्रिया के आधार पर 'कठोर' या 'लचीला' वर्गीकृत किया जाता है। भारतीय संविधान इन दोनों का एक अनूठा मिश्रण है।
- लचीलापन: कुछ प्रावधानों को संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है (जैसे नए राज्यों का निर्माण)।
- कठोरता: कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों (जैसे राष्ट्रपति का चुनाव, सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ) को संशोधित करने के लिए संसद के विशेष बहुमत और आधे राज्यों की विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।
यह अनुच्छेद 368 के तहत सुनिश्चित करता है कि संविधान समय के साथ बदल सके, लेकिन इसकी मूल संरचना सुरक्षित रहे।
4. एकात्मक झुकाव के साथ संघीय व्यवस्था
भारत का संविधान एक संघीय सरकार की स्थापना करता है। इसमें संघवाद के सभी सामान्य लक्षण मौजूद हैं, जैसे:
- दो सरकारें (केंद्र और राज्य)
- शक्तियों का विभाजन (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची)
- लिखित संविधान और संविधान की सर्वोच्चता
तथापि, इसमें एकात्मकता (Unitary) का भी मजबूत झुकाव है, जैसे शक्तिशाली केंद्र, एकल संविधान, एकल नागरिकता, राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र द्वारा, और आपातकालीन प्रावधान। इसलिए, के.सी. व्हीयर ने इसे "अर्ध-संघीय" (Quasi-Federal) कहा है।
5. सरकार का संसदीय स्वरूप
भारतीय संविधान ने अमेरिका की अध्यक्षीय प्रणाली के बजाय ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली को अपनाया है। यह प्रणाली विधायिका और कार्यपालिका के बीच सहयोग और समन्वय के सिद्धांत पर आधारित है।
इसमें राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यकारी प्रमुख होता है, जबकि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास वास्तविक शक्तियाँ होती हैं। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसे 'वेस्टमिंस्टर मॉडल' भी कहा जाता है।
6. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जो राजनीतिक लोकतंत्र की भावना को बढ़ावा देते हैं:
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18): विधि के समक्ष सभी समान हैं।
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22): इसमें भाषण, अभिव्यक्ति और भ्रमण की स्वतंत्रता शामिल है।
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24): मानव तस्करी और बाल श्रम पर रोक।
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28): किसी भी धर्म को मानने और प्रचार करने की छूट।
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30): अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण।
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32): अधिकारों के हनन पर कोर्ट जाने का अधिकार।
ध्यान दें कि संपत्ति के अधिकार को 44वें संशोधन (1978) द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था। ये अधिकार न्यायोचित हैं, यानी इनके उल्लंघन पर नागरिक सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
7. राज्य के नीति-निदेशक तत्व (DPSP)
संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36 से 51) में नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख है। डॉ. अंबेडकर ने इन्हें संविधान की 'अनूठी विशेषता' बताया है। इनका मुख्य उद्देश्य भारत में एक 'कल्याणकारी राज्य' की स्थापना करना और सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र सुनिश्चित करना है। हालाँकि, मौलिक अधिकारों के विपरीत, ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (Non-justiciable) नहीं हैं।
8. मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)
मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नहीं था। इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा भाग IV-A में जोड़ा गया। वर्तमान में अनुच्छेद 51A के तहत 11 मौलिक कर्तव्य हैं (11वां कर्तव्य 86वें संशोधन, 2002 द्वारा जोड़ा गया)। ये नागरिकों को याद दिलाते हैं कि अधिकारों का आनंद लेते समय उन्हें देश के प्रति अपने कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए।
9. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य (Secular State)
भारत का संविधान किसी भी धर्म को राष्ट्र धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता। 42वें संशोधन (1976) द्वारा प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़ा गया।
भारत में धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा (धर्म और राज्य का पूर्ण अलगाव) लागू नहीं होती, बल्कि यहाँ 'सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता' है, जिसका अर्थ है कि सभी धर्मों को समान सम्मान, सुरक्षा और समर्थन प्राप्त है। अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।
10. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
भारतीय संविधान द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है। इसका अर्थ है कि 18 वर्ष (मूलतः 21 वर्ष थी, जिसे 1989 में 61वें संशोधन द्वारा घटाकर 18 किया गया) से ऊपर का प्रत्येक नागरिक, बिना किसी जाति, धर्म, लिंग या साक्षरता के भेदभाव के, मतदान कर सकता है। यह लोकतंत्र को व्यापक आधार प्रदान करता है और आम आदमी के आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
11. एकल नागरिकता (Single Citizenship)
अमेरिका जैसे देशों में दोहरी नागरिकता (देश की और राज्य की) होती है, लेकिन भारत में केवल एकल नागरिकता का प्रावधान है। चाहे कोई व्यक्ति किसी भी राज्य (जैसे राजस्थान, केरल, या बिहार) में रहता हो, वह केवल 'भारत का नागरिक' होता है और उसे पूरे देश में समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में मदद करता है।
12. स्वतंत्र और एकीकृत न्यायपालिका
भारत में एक एकल और एकीकृत न्यायिक प्रणाली है। सबसे ऊपर सुप्रीम कोर्ट है, उसके नीचे राज्यों में हाई कोर्ट और उनके नीचे अधीनस्थ न्यायालय (जिला अदालतें) हैं।
संविधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान करता है, जैसे न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल की सुरक्षा, संचित निधि से वेतन, और संसद में उनके आचरण पर चर्चा पर रोक। यह कार्यपालिका के प्रभाव से मुक्त होकर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है।
13. आपातकालीन प्रावधान
देश की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति को असाधारण शक्तियाँ दी गई हैं। संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल बताए गए हैं:
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के समय।
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356): राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर।
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360): भारत की वित्तीय स्थिरता को खतरा होने पर।
आपातकाल के दौरान संघीय ढांचा एकात्मक में बदल जाता है, जो भारतीय संविधान की एक अद्वितीय विशेषता है।
14. त्रि-स्तरीय सरकार (Three-tier Government)
मूल रूप से संविधान में दो स्तरों (केंद्र और राज्य) की सरकार थी। बाद में, 1992 में 73वें और 74वें संविधान संशोधन ने स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक मान्यता दी।
- 73वां संशोधन: पंचायतों (ग्रामीण स्थानीय सरकार) के लिए (भाग IX, अनुसूची 11)।
- 74वां संशोधन: नगर पालिकाओं (शहरी स्थानीय सरकार) के लिए (भाग IX-A, अनुसूची 12)।
यह विकेंद्रीकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था जो दुनिया के अन्य संविधानों में दुर्लभ है।
🔚 निष्कर्ष
निष्कर्षतः, भारतीय संविधान एक अनूठा, जीवंत और गतिशील दस्तावेज़ है। यद्यपि इसमें दुनिया के कई संविधानों से तत्व लिए गए हैं, लेकिन यह भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाला गया है। यह न केवल सरकार के अंगों की संरचना करता है, बल्कि सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व के आदर्शों को भी स्थापित करता है। इसकी लोचशीलता और मजबूती ने इसे पिछले सात दशकों से अधिक समय तक भारत की एकता और लोकतंत्र का प्रहरी बनाए रखा है।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है और यह संसदीय संप्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता के बीच अद्भुत संतुलन बनाता है।
भारत का संविधान कब लागू हुआ?
भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से लागू हुआ, हालांकि इसके कुछ प्रावधान 26 नवंबर 1949 को ही लागू हो गए थे।
संविधान में कितने मौलिक अधिकार हैं?
वर्तमान में भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार हैं। मूल संविधान में 7 थे, लेकिन संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया।
भारतीय संविधान को 'उधार का थैला' क्यों कहा जाता है?
चूँकि भारतीय संविधान के कई प्रावधान (जैसे मौलिक अधिकार अमेरिका से, संसदीय प्रणाली ब्रिटेन से) अन्य देशों से प्रेरित हैं, इसलिए आलोचक इसे कभी-कभी 'उधार का थैला' कहते हैं, हलाकि यह भारतीय परिस्थितियों के लिए संशोधित किया गया है।
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