परिचय: एक ऐतिहासिक कदम
भारतीय संविधान का 13वां संशोधन अधिनियम, 1962, भारत के संघीय ढांचे और राष्ट्रीय एकता के इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह केवल एक कानूनी औपचारिकता नहीं थी, बल्कि यह दशकों के विद्रोह, राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक पहचान के संघर्ष को समाप्त करने का एक साहसिक प्रयास था। इस संशोधन ने मुख्य रूप से नागालैंड (Nagaland) को भारतीय संघ के 16वें राज्य के रूप में स्थापित किया।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस संशोधन ने भारतीय संविधान में एक नया और अनूठा अनुच्छेद 371ए (Article 371A) जोड़ा। यह अनुच्छेद नागा लोगों की विशिष्ट सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक पहचान की रक्षा के लिए विशेष संवैधानिक गारंटी प्रदान करता है। यह संशोधन दर्शाता है कि भारतीय संविधान 'विविधता में एकता' के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए कितना लचीला और अनुकूलनीय है।
13वें संशोधन की पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
नागालैंड के निर्माण और 13वें संशोधन की जड़ें ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता संग्राम तक फैली हुई हैं।
ब्रिटिश नीति और अलगाव: अंग्रेजों ने नागा पहाड़ियों को "एक्सक्लूडेड एरिया" (Excluded Area) के रूप में प्रशासित किया, उन्हें शेष भारत से काफी हद तक अलग रखा। इसने एक विशिष्ट नागा पहचान को मजबूत किया।
स्वतंत्रता की घोषणा: 14 अगस्त, 1947 को, भारत की स्वतंत्रता से एक दिन पहले, 'नागा नेशनल काउंसिल' (Naga National Council - NNC) के नेता अंगामी ज़ापू फिज़ो (Angami Zapu Phizo) के नेतृत्व में नागा नेताओं ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उन्होंने भारतीय संघ में शामिल होने से इनकार कर दिया।
विद्रोह और अशांति: 1950 के दशक में, यह राजनीतिक मांग एक हिंसक विद्रोह में बदल गई। NNC ने एक समानांतर सरकार और सेना का गठन किया, जिससे यह क्षेत्र दशकों तक अशांत रहा। केंद्र सरकार को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना भेजनी पड़ी और 'सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम' (AFSPA) लागू करना पड़ा।
शांति की पहल और नागा पीपल्स कन्वेंशन: हिंसा के इस दौर के बीच, नागा समाज के भीतर ही एक उदारवादी वर्ग उभरा, जो हिंसा की बजाय बातचीत के माध्यम से समाधान चाहता था। 1957 में, विभिन्न नागा जनजातियों के प्रतिनिधियों ने 'नागा पीपल्स कन्वेंशन' (Naga People's Convention - NPC) का गठन किया।
16-सूत्री समझौता (1960)
13वें संशोधन का आधार यही 16-सूत्री समझौता है। NPC ने भारत सरकार के साथ लंबी बातचीत की और जुलाई 1960 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ एक 16-सूत्री समझौते पर पहुँचे। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य नागा लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करना और उन्हें भारतीय संघ के भीतर एक सम्मानित स्थान देना था।
इस समझौते की प्रमुख माँगें थीं:
- असम राज्य से नागा हिल्स और त्युएनसांग क्षेत्र को अलग कर 'नागालैंड' नामक एक नए राज्य का निर्माण करना।
- नागाओं के धार्मिक, सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष संवैधानिक प्रावधान करना।
- कानून और व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए एक संक्रमणकालीन अवधि के लिए राज्यपाल को कुछ विशेष शक्तियाँ देना।
- त्युएनसांग (Tuensang) जिले के लिए, जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम विकसित था, 10 वर्षों के लिए एक विशेष प्रशासनिक व्यवस्था करना।
केंद्र सरकार ने इन मांगों को स्वीकार कर लिया, और इसी समझौते को कानूनी और संवैधानिक रूप देने के लिए 13वें संशोधन की आवश्यकता पड़ी।
13वें संशोधन के प्रमुख प्रावधान (अनुच्छेद 371A)
इस संशोधन ने संविधान में अनुच्छेद 371A को जोड़ा, जो नागालैंड के लिए "विशेष प्रावधान" करता है। यह अनुच्छेद भारतीय संघवाद के 'असममित मॉडल' (Asymmetrical Federalism) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ एक राज्य को उसकी अनूठी जरूरतों के कारण अलग दर्जा दिया जाता है।
अनुच्छेद 371A के मुख्य खंड और उनके अर्थ निम्नलिखित हैं:
1. नागा प्रथागत कानून को सर्वोच्चता [Clause 1(a)]
यह इस अनुच्छेद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अनुसार, संसद का कोई भी अधिनियम (Act of Parliament) नागालैंड राज्य पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि नागालैंड की राज्य विधान सभा उसे एक प्रस्ताव द्वारा अपना न ले। यह नियम निम्नलिखित चार मामलों पर लागू होता है:
- (i) नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएँ: उनके त्योहार, अनुष्ठान और सामाजिक संरचना।
- (ii) नागा प्रथागत कानून और प्रक्रिया: पारंपरिक कानूनों (Customary Law) के अनुसार विवादों का निपटारा।
- (iii) दीवानी और आपराधिक न्याय का प्रशासन: जहाँ निर्णय नागा प्रथागत कानून के अनुसार होते हैं।
- (iv) भूमि और उसके संसाधनों का स्वामित्व और हस्तांतरण: यह सुनिश्चित करता है कि भूमि अधिकार स्थानीय समुदाय के पास रहें।
यह प्रावधान नागा पहचान के मूल स्तंभों—उनकी संस्कृति, उनके कानून और उनकी भूमि—को संवैधानिक संरक्षण देता है।
2. राज्यपाल की विशेष जिम्मेदारी [Clause 1(b)]
16-सूत्री समझौते को लागू करते समय, यह माना गया कि चूँकि राज्य में विद्रोह अभी भी सक्रिय था, इसलिए कानून और व्यवस्था की अंतिम जिम्मेदारी एक संक्रमण काल के लिए राज्यपाल के पास होनी चाहिए।
- अनुच्छेद 371A ने यह प्रावधान किया कि "आंतरिक गड़बड़ी" की स्थिति में राज्यपाल के पास कानून और व्यवस्था के लिए विशेष जिम्मेदारी होगी।
- इस मामले में, राज्यपाल मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) से परामर्श कर सकते थे, लेकिन उनका निर्णय अंतिम होता। यह प्रावधान राज्य के गठन के बाद एक निश्चित अवधि के लिए था, जिसे राष्ट्रपति के निर्देश पर समाप्त किया जा सकता था।
3. त्युएनसांग जिले के लिए विशेष प्रावधान [Clause 2]
समझौते के अनुसार, त्युएनसांग जिला, जो उस समय बाकी नागा हिल्स की तुलना में प्रशासनिक रूप से पिछड़ा हुआ था, के लिए 10 वर्षों की अवधि के लिए विशेष व्यवस्था की गई:
- इसका प्रशासन सीधे राज्यपाल द्वारा चलाया जाना था।
- नागालैंड विधानसभा द्वारा बनाया गया कोई भी कानून इस जिले पर तब तक लागू नहीं होता, जब तक राज्यपाल निर्देश न दें।
- इस जिले के लिए एक अलग 'क्षेत्रीय परिषद' (Regional Council) का प्रावधान किया गया।
- (यह 10 साल की अवधि 1973 में समाप्त हो गई, और त्युएनसांग को राज्य के बाकी हिस्सों के बराबर लाया गया।)
संशोधन का उद्देश्य और प्रभाव
13वें संशोधन का प्राथमिक उद्देश्य स्पष्ट था: शांति स्थापना और राजनीतिक मेल-मिलाप।
मुख्य प्रभाव निम्नलिखित थे:
- राज्य का दर्जा और लोकतंत्र की बहाली: इसने 1 दिसंबर, 1963 को नागालैंड को एक पूर्ण राज्य के रूप में स्थापित किया। इसने विद्रोहियों के एक बड़े वर्ग (NPC) को मुख्यधारा की राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर दिया।
- सांस्कृतिक पहचान की संवैधानिक गारंटी: अनुच्छेद 371A ने नागा लोगों को यह अमूल्य आश्वासन दिया कि भारतीय संघ में शामिल होने का मतलब उनकी विशिष्ट पहचान का खत्म होना नहीं है, बल्कि उसकी संवैधानिक सुरक्षा है।
- असममित संघवाद का मॉडल: इस संशोधन ने पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल तैयार किया। बाद में मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्सों के लिए भी इसी तरह के विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 371B, 371C, 371G आदि) किए गए।
- आलोचना और चुनौतियाँ: हालाँकि, यह संशोधन सभी पक्षों को संतुष्ट नहीं कर सका। ए.जेड. फिज़ो के नेतृत्व वाले NNC जैसे कट्टरपंथी गुटों ने 16-सूत्री समझौते और 13वें संशोधन को "धोखा" करार दिया और संप्रभुता के लिए अपना सशस्त्र संघर्ष जारी रखा। इस प्रकार, यह संशोधन शांति की दिशा में एक बड़ा कदम था, लेकिन यह संघर्ष का पूर्ण अंत नहीं था।
न्यायिक व्याख्या और 13वां संशोधन
13वें संशोधन या अनुच्छेद 371A की वैधता को सीधे तौर पर कभी चुनौती नहीं दी गई है। हालाँकि, समय-समय पर इसकी व्याख्या को लेकर कानूनी बहसें हुई हैं।
एक महत्वपूर्ण उदाहरण SARFAESI अधिनियम, 2002 (वित्तीय संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित का प्रवर्तन अधिनियम) के संदर्भ में आया। जब बैंकों ने ऋण वसूली के लिए नागालैंड में भूमि को जब्त करने का प्रयास किया, तो यह तर्क दिया गया कि SARFAESI अधिनियम, जो एक केंद्रीय कानून है, अनुच्छेद 371A(1)(a)(iv) का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह "भूमि के हस्तांतरण" से संबंधित है और इसे राज्य विधानसभा द्वारा पारित नहीं किया गया था।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचे मामलों ने यह स्थापित किया कि अनुच्छेद 371A के तहत नागालैंड को दिया गया संवैधानिक संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है और केंद्रीय कानूनों को इसे ओवरराइड करने से पहले इन विशेष प्रावधानों का सम्मान करना होगा।
जहाँ तक केशवानंद भारती केस (1973) का सवाल है, वह 13वें संशोधन के कई साल बाद आया। लेकिन 13वां संशोधन स्वयं इस बात का प्रमाण है कि संविधान निर्माता और प्रारंभिक संसदें संविधान को कितना लचीला मानती थीं, ताकि वह देश की विविध क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित कर सके—एक भावना जिसे बाद में "मूल संरचना सिद्धांत" ने संतुलित किया।
संबंधित संवैधानिक संशोधन
13वां संशोधन 1962 में हुए तीन महत्वपूर्ण संशोधनों में से एक था, जो भारत में क्षेत्रों के एकीकरण से संबंधित थे:
- 12वां संशोधन (1962): गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराकर भारत के केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में शामिल किया गया।
- 14वां संशोधन (1962): पुडुचेरी (पूर्व में पांडिचेरी) को फ्रांसीसी शासन से हस्तांतरित कर भारत में एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एकीकृत किया गया।
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
| तथ्य | विवरण |
|---|---|
| संशोधन अधिनियम | 13वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 |
| लागू होने की तिथि | 28 दिसंबर 1962 (अधिनियम), 1 दिसंबर 1963 (राज्य स्थापना) |
| संबंधित राज्य | नागालैंड (Nagaland) |
| नया अनुच्छेद जोड़ा गया | अनुच्छेद 371ए (Article 371A) |
| नागालैंड का दर्जा | भारत का 16वां राज्य |
| आधार (समझौता) | नागा पीपल्स कन्वेंशन (NPC) के साथ 16-सूत्री समझौता (1960) |
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का 13वां संशोधन सिर्फ एक राज्य के निर्माण का कानून नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक दूरदर्शिता, मेल-मिलाप और 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की भावना का प्रतीक है। इसने यह सिद्ध किया कि भारतीय संविधान कठोर होने के साथ-साथ अत्यंत लचीला भी है, जो देश के किसी भी हिस्से की अनूठी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को समायोजित करने और उसे संरक्षित करने की क्षमता रखता है। अनुच्छेद 371A आज भी नागा पहचान और अधिकारों की संवैधानिक ढाल बना हुआ है, जो क्षेत्र में शांति और विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: 13वां संविधान संशोधन कब पारित हुआ?
उत्तर: 13वां संविधान संशोधन अधिनियम 1962 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था और इसे 28 दिसंबर 1962 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।
प्रश्न 2: 13वें संशोधन ने किस नए राज्य का गठन किया?
उत्तर: इस संशोधन ने असम राज्य के नागा हिल्स और त्युएनसांग क्षेत्र को मिलाकर 'नागालैंड' को भारत के 16वें राज्य के रूप में स्थापित किया, जो 1 दिसंबर 1963 को अस्तित्व में आया।
प्रश्न 3: अनुच्छेद 371A क्या है?
उत्तर: अनुच्छेद 371A, 13वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया एक विशेष प्रावधान है, जो नागालैंड राज्य को यह अधिकार देता है कि संसद का कोई भी कानून जो नागा प्रथागत कानून, सामाजिक प्रथाओं, या भूमि अधिकारों से संबंधित है, वह राज्य विधानसभा की सहमति के बिना लागू नहीं होगा।
प्रश्न 4: यह संशोधन किस समझौते पर आधारित था?
उत्तर: यह संशोधन भारत सरकार और 'नागा पीपल्स कन्वेंशन' (NPC) के बीच 1960 में हुए 16-सूत्री समझौते (16-Point Agreement) को लागू करने के लिए लाया गया था।
प्रश्न 5: क्या अनुच्छेद 371A को हटाया जा सकता है?
उत्तर: सैद्धांतिक रूप से, इसे संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया के माध्यम से हटाया या संशोधित किया जा सकता है, लेकिन यह नागालैंड के भारत में विलय की शर्तों का आधार है, इसलिए इसे बदलना एक अत्यंत संवेदनशील राजनीतिक और कानूनी मुद्दा होगा।
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