8वीं अनुसूची: 22 भाषाएं | 8th Schedule Indian Constitution

 

📌 प्रस्तावना

भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, जहाँ अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं। भारतीय संविधान ने इस भाषाई विविधता को स्वीकार करते हुए आठवीं अनुसूची में अनेक भाषाओं को मान्यता दी है। इस लेख में हम जानेंगे कि संविधान में कितनी भाषाएँ शामिल हैं, कौन-कौन सी भाषाएँ हैं, कब जोड़ी गईं, इनके महत्व क्या हैं और ये संविधान में किस संदर्भ में वर्णित हैं।

                                                   

भारतीय संविधान में भाषाएं: आठवीं अनुसूची


🗣️ भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची क्या है?

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची (8th Schedule) उन भाषाओं की सूची है जिन्हें भारत सरकार द्वारा आधिकारिक मान्यता प्राप्त है। शुरुआत में इस अनुसूची में केवल 14 भाषाएं शामिल थीं, लेकिन बाद के संशोधनों में इनकी संख्या बढ़ाकर अब 22 भाषाएं कर दी गई हैं।


📜 आठवीं अनुसूची की भाषाओं की सूची

क्रम भाषा का नाम
1 असमिया (Assamese)
2 बंगाली (Bengali)
3 गुजराती (Gujarati)
4 हिंदी (Hindi)
5 कन्नड़ (Kannada)
6 कश्मीरी (Kashmiri)
7 कोंकणी (Konkani)
8 मलयालम (Malayalam)
9 मणिपुरी (Manipuri)
10 मराठी (Marathi)
11 नेपाली (Nepali)
12 उड़िया (Odia)
13 पंजाबी (Punjabi)
14 संस्कृत (Sanskrit)
15 संथाली (Santhali)
16 सिंधी (Sindhi)
17 तमिल (Tamil)
18 तेलुगु (Telugu)
19 उर्दू (Urdu)
20 बोडो (Bodo)
21 डोगरी (Dogri)
22 मैथिली (Maithili)

📅 ये भाषाएँ कब और कैसे जुड़ीं?

🏛️ संविधान लागू होने पर (1950):

शुरुआत में आठवीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं।

📕 21वां संशोधन (1967):

सिंधी भाषा जोड़ी गई – कुल 15 भाषाएं।

📘 71वां संशोधन (1992):

कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली – कुल 18 भाषाएं।

📙 92वां संशोधन (2003):

बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली – कुल 22 भाषाएं।


⚖️ भारतीय संविधान में भाषाओं से जुड़े अनुच्छेद

अनुच्छेद विषयवस्तु
343 भारत की राजभाषा – हिंदी (देवनागरी लिपि)
344 राजभाषा के लिए आयोग और समिति
345 राज्यों की अपनी राजभाषा चुनने का अधिकार
346 केंद्र और राज्यों के बीच संचार की भाषा
347 किसी क्षेत्र में नई भाषा को मान्यता देना
348 उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में प्रयुक्त भाषा
351 हिंदी भाषा के प्रचार का निर्देश


भारतीय संविधान में भाषाओं की भूमिका
  • प्रशासन में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग।

  • शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा का बढ़ता महत्व।

  • संविधान की भाषाई अनुवाद प्रक्रिया में इन भाषाओं का योगदान।

  • लोक सेवा आयोगों और परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं की अनुमति।

निष्कर्ष

भारत की भाषाई विविधता उसकी सबसे बड़ी ताकत है। संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएं न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं, बल्कि सामाजिक समावेशन को भी मजबूत करती हैं। इन भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए संविधान ने ठोस प्रावधान किए हैं, जिससे हर भाषा बोलने वाला गर्व से कह सके — “मेरी भाषा भी भारत की पहचान है।”


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ