यह एक्ट न केवल कंपनी के भ्रष्टाचार पर लगाम कसने का एक प्रयास था, बल्कि यह भारत के संवैधानिक विकास की यात्रा का प्रारंभिक बिंदु भी माना जाता है। इस लेख में, हम गहराई से जानेंगे कि 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट क्यों पारित किया गया, इसके मुख्य प्रावधान क्या थे, इसकी कमियां (दोष) क्या थीं, और भारतीय इतिहास पर इसका क्या दूरगामी प्रभाव पड़ा।
1. 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट क्या था? (What was the Regulating Act 1773?)
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट, ब्रिटिश प्रधान मंत्री लॉर्ड नॉर्थ (Lord North) की सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया एक संसदीय कानून था। इसका मुख्य उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी, जो उस समय तक भारत के बड़े हिस्सों पर एक व्यापारिक इकाई से बदलकर एक राजनीतिक शक्ति बन चुकी थी, की गतिविधियों को "विनियमित" (Regulate) करना था।
1757 में प्लासी की लड़ाई और 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद, कंपनी ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर दीवानी (राजस्व वसूलने) के अधिकार प्राप्त कर लिए थे। इससे कंपनी के अधिकारी रातों-रात अमीर हो गए, लेकिन कंपनी खुद वित्तीय संकट में घिरती जा रही थी। यह एक्ट इसी विरोधाभास को संबोधित करने और भारत में कंपनी के कुशासन को नियंत्रित करने का पहला गंभीर प्रयास था।
2. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 क्यों पारित किया गया? (इसके पीछे के कारण)
इस एक्ट को लाने के पीछे कई तात्कालिक और दीर्घकालिक कारण मौजूद थे, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को सीधे हस्तक्षेप के लिए मजबूर कर दिया:
- कंपनी का वित्तीय संकट: 1770 के दशक तक, ईस्ट इंडिया कंपनी कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के कारण दिवालिया होने के कगार पर पहुँच गई थी। 1772 में, कंपनी ने ब्रिटिश सरकार से 1 मिलियन पाउंड के विशाल ऋण के लिए आवेदन किया, जिसने सरकार को कंपनी के मामलों की जाँच करने का मौका दे दिया।
- अधिकारियों का भ्रष्टाचार: कंपनी के अधिकारी (जिन्हें 'नबोब' कहा जाता था) भारत में बड़े पैमाने पर निजी व्यापार करते थे, स्थानीय लोगों से रिश्वत और महंगे उपहार लेते थे। वे भारत से अकूत संपत्ति लेकर ब्रिटेन लौट रहे थे, जबकि कंपनी घाटे में थी।
- बंगाल का भीषण अकाल (1770): 1770 में बंगाल में पड़े विनाशकारी अकाल ने लगभग एक तिहाई आबादी को खत्म कर दिया। इसके लिए कंपनी की कठोर राजस्व नीतियों और उदासीनता को बड़े पैमाने पर जिम्मेदार ठहराया गया, जिसने ब्रिटिश संसद में भी चिंता पैदा कर दी।
- द्वैध शासन की विफलता: रॉबर्ट क्लाइव द्वारा बंगाल में शुरू की गई 'द्वैध शासन' (Dual Government) प्रणाली पूरी तरह विफल रही थी। इसमें नवाब के पास जिम्मेदारी थी (जैसे कानून व्यवस्था), लेकिन राजस्व (पैसा) कंपनी के पास था। इस व्यवस्था ने अराजकता और लूट को जन्म दिया।
- राजनीतिक महत्वाकांक्षा: ब्रिटिश संसद को यह अहसास होने लगा था कि भारत में कंपनी के पास एक विशाल क्षेत्र और सेना है, जिसे अनियंत्रित छोड़ना खुद ब्रिटेन के लिए खतरनाक हो सकता है।
3. 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के प्रमुख उद्देश्य
इस कानून को पारित करने के पीछे ब्रिटिश सरकार के स्पष्ट उद्देश्य थे:
- ईस्ट इंडिया कंपनी के कुशासन और भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
- कंपनी के भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद के नियंत्रण को स्थापित करना।
- भारत में कंपनी के विभिन्न प्रेसीडेंसियों (बंगाल, बंबई और मद्रास) के बीच एक केंद्रीयकृत प्रशासन की शुरुआत करना।
- कंपनी के अधिकारियों द्वारा किए जा रहे निजी व्यापार और रिश्वतखोरी को रोकना।
- भारत में एक बेहतर न्यायिक प्रणाली की स्थापना करना।
4. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के मुख्य प्रावधान (Key Provisions)
1773 के रेगुलेटिंग एक्ट ने भारत में कंपनी के प्रशासन के ढांचे को मौलिक रूप से बदल दिया। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे:
बंगाल के गवर्नर का 'गवर्नर-जनरल' बनना
यह इस एक्ट का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान था।
- बंगाल के गवर्नर को अब "बंगाल का गवर्नर-जनरल" (Governor-General of Bengal) बना दिया गया।
- लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्स (Lord Warren Hastings) को बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया। (आप यहाँ भारत के सभी गवर्नर-जनरल की पूरी सूची देख सकते हैं।)
- बंबई (Bombay) और मद्रास (Madras) प्रेसीडेंसी के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। हालाँकि, यह अधीनता अस्पष्ट थी, खासकर युद्ध और शांति के मामलों में, जो बाद में विवाद का कारण बनी।
गवर्नर-जनरल की परिषद (Council) का गठन
- गवर्नर-जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों वाली एक कार्यकारी परिषद (Executive Council) का गठन किया गया।
- इन चार सदस्यों के नाम थे: फिलिप फ्रांसिस, क्लेवरिंग, मॉनसन और बारवेल।
- निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते थे। गवर्नर-जनरल के पास केवल एक वोट था, और टाई (मत बराबर) होने की स्थिति में ही वह एक निर्णायक वोट (Casting Vote) दे सकता था।
- यह प्रावधान वॉरेन हेस्टिंग्स के लिए एक बड़ी समस्या बन गया, क्योंकि परिषद के सदस्य अक्सर उसके खिलाफ एकजुट हो जाते थे, जिससे प्रशासन का काम ठप पड़ जाता था।
कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (1774)
- इस एक्ट के तहत, 1774 में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में एक सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of Judicature) की स्थापना की गई।
- इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश होते थे। सर एलिजाह इम्पे (Sir Elijah Impey) को इसका पहला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
- सुप्रीम कोर्ट को कलकत्ता में रहने वाले सभी ब्रिटिश नागरिकों, कंपनी के कर्मचारियों और कुछ हद तक भारतीय नागरिकों पर भी न्यायिक अधिकार दिया गया।
- हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और गवर्नर-जनरल की परिषद के बीच शक्तियों का विभाजन स्पष्ट नहीं था। यह स्पष्ट नहीं था कि कंपनी के राजस्व अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आते हैं या नहीं, जिसने गंभीर टकरावों को जन्म दिया (जैसे, नंदकुमार का मामला)।
कंपनी के निदेशकों (Court of Directors) पर नियंत्रण
- लंदन में स्थित कंपनी के 'कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स' (निदेशक मंडल) के कार्यकाल को एक वर्ष से बढ़ाकर चार वर्ष कर दिया गया।
- यह अनिवार्य कर दिया गया कि डायरेक्टर्स भारत से प्राप्त होने वाले सभी राजस्व, नागरिक और सैन्य प्रशासन से संबंधित सभी मामलों की रिपोर्ट सीधे ब्रिटिश ट्रेजरी (राजकोष) और विदेश सचिव को भेजें।
- यह कदम कंपनी की गतिविधियों पर ब्रिटिश सरकार की निगरानी स्थापित करने के लिए उठाया गया था।
निजी व्यापार और रिश्वत पर प्रतिबंध
- एक्ट ने कंपनी के किसी भी कर्मचारी (गवर्नर-जनरल से लेकर क्लर्क तक) को किसी भी रूप में निजी व्यापार करने से प्रतिबंधित कर दिया।
- इसके अतिरिक्त, अधिकारियों पर स्थानीय भारतीय शासकों या आम लोगों से किसी भी प्रकार का उपहार, भेंट या रिश्वत लेना पूरी तरह से अवैध घोषित कर दिया गया। यह भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार था।
5. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 का महत्व और प्रभाव
तमाम कमियों के बावजूद, 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट का भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्व है:
- केंद्रीय प्रशासन की नींव: यह भारत में एक केंद्रीयकृत प्रशासन की दिशा में पहला कदम था। बंबई और मद्रास को बंगाल के अधीन लाकर, इसने पहली बार भारत में कंपनी के क्षेत्रों को एक राजनीतिक इकाई के रूप में देखने का प्रयास किया।
- संवैधानिक विकास की शुरुआत: यह पहला कानून था जिसके द्वारा ब्रिटिश संसद ने भारत में कंपनी के शासन पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया। यह भारत के उस संवैधानिक विकास की लंबी यात्रा का प्रस्थान बिंदु था, जिसका अंत 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के साथ हुआ। इस एक्ट से शुरू हुई यात्रा और बाद में हुए विभिन्न संवैधानिक संशोधनों ने देश के वर्तमान स्वरुप को गढ़ने में मदद की।
- भ्रष्टाचार पर अंकुश: इसने कंपनी के अधिकारियों के बेलगाम भ्रष्टाचार और निजी व्यापार पर रोक लगाने का प्रयास किया, जिससे शासन में कुछ हद तक जवाबदेही आई।
- लिखित कानून: इसने भारत में "कानून के शासन" (Rule of Law) की एक अस्पष्ट शुरुआत की, जहाँ प्रशासन को मनमर्जी से नहीं, बल्कि एक लिखित कानून (एक्ट) के अनुसार चलाया जाना था।
6. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के दोष और कमियां
1773 का एक्ट जल्दबाजी में तैयार किया गया एक कानून था, जिसमें कई गंभीर खामियां थीं, जिन्हें "रेगुलेटिंग एक्ट के दोष" के रूप में जाना जाता है:
- गवर्नर-जनरल की कमजोरी: गवर्नर-जनरल को अपनी ही परिषद पर कोई वीटो (Veto) शक्ति नहीं दी गई थी। वह बहुमत से बंधा हुआ था। इससे वॉरेन हेस्टिंग्स को अपनी नीतियां लागू करने में भारी कठिनाई हुई और परिषद के साथ उसका निरंतर संघर्ष चलता रहा।
- अस्पष्ट क्षेत्राधिकार (Conflict of Power): एक्ट की सबसे बड़ी विफलता सुप्रीम कोर्ट और गवर्नर-जनरल की परिषद के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा न करना था। यह स्पष्ट नहीं था कि कानून बनाने का अंतिम अधिकार किसके पास है या कंपनी के राजस्व मामलों में सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है या नहीं।
- बंबई और मद्रास पर अपूर्ण नियंत्रण: बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी पर बंगाल का नियंत्रण केवल "कुछ मामलों" में था और अस्पष्ट था। उन प्रेसीडेंसियों ने अक्सर बंगाल के निर्देशों की अनदेखी की। इसी अस्पष्टता और बंबई प्रेसीडेंसी की मनमानी के कारण प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-82) शुरू हुआ, जिसने एक्ट की इस कमी को उजागर कर दिया।
- भारतीयों की उपेक्षा: कानून बनाते समय भारतीय समाज, उनकी परंपराओं और कानूनों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा लागू किए जा रहे अंग्रेजी कानून अक्सर भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नहीं थे।
7. एक्ट में सुधार: पिट्स इंडिया एक्ट (1784)
1773 के रेगुलेटिंग एक्ट की गंभीर कमियों को दूर करने के लिए, ब्रिटिश संसद ने पहले 1781 में एक संशोधनात्मक अधिनियम (Amending Act of 1781) पारित किया, जिसने सुप्रीम कोर्ट और गवर्नर-जनरल के क्षेत्राधिकार को कुछ हद तक स्पष्ट किया।
लेकिन वास्तविक बड़ा सुधार 1784 में "पिट्स इंडिया एक्ट" (Pitt's India Act) के रूप में आया। इस एक्ट ने गवर्नर-जनरल को अधिक शक्तियाँ दीं (परिषद पर वीटो पावर), और लंदन में "बोर्ड ऑफ कंट्रोल" (Board of Control) की स्थापना करके कंपनी के राजनीतिक और सैन्य मामलों पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण लगभग पूर्ण कर दिया।
8. निष्कर्ष
1773 का रेगुलेटING एक्ट (Regulating Act 1773) भारतीय इतिहास का एक निर्णायक मोड़ था। यह भले ही अपने उद्देश्यों में पूरी तरह सफल नहीं हुआ और इसमें कई खामियां थीं, लेकिन इसने इस तथ्य को स्थापित कर दिया कि ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक व्यापारिक संस्था नहीं, बल्कि ब्रिटिश क्राउन के प्रति जवाबदेह एक राजनीतिक शक्ति है। इसने भारत में कंपनी के शासन को "विनियमित" करने का जो प्रयास शुरू किया, उसी रास्ते पर चलकर अंततः 1858 में भारत का शासन सीधे ब्रिटिश ताज (Crown) के हाथों में चला गया। यह एक्ट भारत के भावी संविधान की नींव का पहला पत्थर था।
9. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट किसने पारित किया?
उत्तर: 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट ब्रिटिश संसद (British Parliament) द्वारा पारित किया गया था। उस समय ब्रिटेन के प्रधान मंत्री लॉर्ड नॉर्थ थे।
प्रश्न 2: रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के तहत बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल कौन बना?
उत्तर: लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्स (Lord Warren Hastings) को 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट के तहत बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया।
प्रश्न 3: 1773 के एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कहाँ की गई?
उत्तर: इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, 1774 में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी, जिसके पहले मुख्य न्यायाधीश सर एलिजAH इम्पे थे।
प्रश्न 4: 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट की सबसे बड़ी कमी क्या थी?
उत्तर: इस एक्ट की सबसे बड़ी कमी गवर्नर-जनरल और उसकी परिषद के बीच, तथा गवर्नर-जनरल की परिषद और सुप्रीम कोर्ट के बीच शक्तियों का अस्पष्ट विभाजन था। इससे प्रशासन में लगातार टकराव और गतिरोध की स्थिति बनी रहती थी।
प्रश्न 5: रेगुलेटिंग एक्ट 1773 का क्या महत्व है?
उत्तर: इसका सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह भारत में कंपनी के मामलों को नियंत्रित करने का पहला संसदीय प्रयास था और इसने भारत में एक केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी, जो भारतीय संवैधानिक विकास का पहला चरण माना जाता है।
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