🟦 1️⃣ परिचय (Introduction)
भारतीय संविधान का 6वां संशोधन अधिनियम, 1956 (6th Constitutional Amendment Act, 1956) भारत के संवैधानिक और आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह संशोधन मुख्य रूप से देश के संघीय ढांचे के भीतर व्यापार और वाणिज्य (Trade and Commerce) पर कर लगाने की शक्ति को स्पष्ट करने के लिए लाया गया था।
सरल शब्दों में कहें तो, 1956 से पहले राज्यों के बीच होने वाले व्यापार (एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान बेचना) पर टैक्स कौन वसूलेगा—केंद्र सरकार या राज्य सरकार—इसे लेकर बहुत भ्रम और कानूनी विवाद थे। इस संशोधन ने सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) और संविधान के कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में बदलाव करके केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय बिक्री पर कर (Inter-state Sales Tax) लगाने का अधिकार दिया।
📑 विषय सूची (Table of Contents)
यह संशोधन न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने केंद्र-राज्य संबंधों (Center-State Relations) को भी नई परिभाषा दी, जिससे भारत में 'एक देश, एक बाजार' की अवधारणा को शुरुआती मजबूती मिली।
🟧 2️⃣ पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Background & Context)
किसी भी संविधान संशोधन को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि आखिर उसे लाने की जरूरत क्यों पड़ी। 6वें संविधान संशोधन के पीछे की कहानी भारतीय न्यायपालिका और संसद के बीच के एक दिलचस्प टकराव और आर्थिक असंतुलन से जुड़ी है।
संवैधानिक संकट और न्यायिक निर्णय
संविधान लागू होने के बाद, अनुच्छेद 286 के तहत राज्यों को अपनी सीमाओं के भीतर बिक्री पर कर लगाने का अधिकार था। लेकिन समस्या तब उत्पन्न हुई जब व्यापार एक राज्य से दूसरे राज्य (Inter-state) में होने लगा।
- विवाद की जड़: क्या राज्य सरकार उस सामान पर टैक्स लगा सकती है जो दूसरे राज्य से आ रहा है या दूसरे राज्य को भेजा जा रहा है?
- सुप्रीम कोर्ट के विरोधाभासी निर्णय:
- यूनाइटेड मोटर्स (इंडिया) लिमिटेड बनाम बॉम्बे राज्य (1953): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जिस राज्य में सामान की खपत (Consumption) होती है या सामान डिलीवर किया जाता है, वह राज्य उस पर टैक्स लगा सकता है, भले ही व्यापार अंतर्राज्यीय हो।
- बंगाल इम्यूनिटी कंपनी लिमिटेड बनाम बिहार राज्य (1955): 1955 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पुराने फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 286 के तहत, कोई भी राज्य अंतर्राज्यीय व्यापार (Inter-state trade) पर बिक्री कर नहीं लगा सकता जब तक कि संसद कानून बनाकर इसकी अनुमति न दे।
कराधान जांच आयोग (Taxation Enquiry Commission) की सिफारिश
बंगाल इम्यूनिटी केस (1955) के फैसले से राज्यों की कमाई पर भारी असर पड़ा। राज्यों के बीच आर्थिक अराजकता फैलने का डर था क्योंकि वे बाहर से आने वाले सामान पर टैक्स नहीं लगा पा रहे थे। इस समस्या को सुलझाने के लिए कराधान जांच आयोग (Mathai Commission) ने सिफारिश की कि:
- अंतर्राज्यीय व्यापार पर कर लगाने की शक्ति विशेष रूप से केंद्र सरकार (Union Government) के पास होनी चाहिए।
- राज्यों को यह शक्ति नहीं मिलनी चाहिए ताकि पूरे देश में करों में एकरूपता बनी रहे।
इन्हीं सिफारिशों को लागू करने के लिए 6वां संविधान संशोधन लाया गया।
🟨 3️⃣ प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया (Proposal & Passage Process)
इस संशोधन का विधायी सफर भारतीय संसद की परिपक्वता को दर्शाता है, जहाँ आर्थिक स्थिरता के लिए त्वरित कदम उठाए गए।
| विधेयक का नाम | संविधान (दसवां संशोधन) विधेयक, 1956 (बिल नंबर अलग था) |
| प्रस्तुतकर्ता | तत्कालीन वित्त मंत्री |
| संसद द्वारा पारित | अगस्त-सितंबर 1956 |
| राष्ट्रपति की स्वीकृति | 11 सितंबर, 1956 |
संसद में इस बात पर आम सहमति थी कि व्यापार को करों के जाल से बचाने के लिए एक केंद्रीय कानून की आवश्यकता है। इसलिए, लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने इसे विशेष बहुमत से पारित किया और राज्यों के विधानमंडलों ने भी इसका अनुसमर्थन (Ratification) किया, क्योंकि यह संघीय ढांचे (Federal Structure) से जुड़ा मामला था।
🟩 4️⃣ संशोधन के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions of the Amendment)
6वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 ने संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों और सातवीं अनुसूची में बड़े बदलाव किए। इसे विस्तार से समझना जरूरी है।
1. सातवीं अनुसूची में संशोधन (Amendment to the Seventh Schedule)
संविधान की सातवीं अनुसूची, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा करती है, उसमें संघ सूची (Union List) में एक नई प्रविष्टि जोड़ी गई:
- प्रविष्टि 92A (Entry 92A): इसे जोड़कर केंद्र सरकार को यह शक्ति दी गई कि वह समाचार पत्रों (Newspapers) को छोड़कर, अंतर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान सामानों की खरीद-बिक्री पर कर लगा सकती है।
- इसका सीधा अर्थ था कि अब एक राज्य से दूसरे राज्य में माल बेचने पर टैक्स लगाने का अधिकार सिर्फ संसद (केंद्र) के पास होगा।
2. अनुच्छेद 269 में संशोधन (Amendment to Article 269)
अनुच्छेद 269 उन करों से संबंधित है जो केंद्र द्वारा लगाए और वसूले जाते हैं, लेकिन राज्यों को सौंप दिए जाते हैं।
- इस संशोधन ने स्पष्ट किया कि अंतर्राज्यीय व्यापार पर लगाया गया कर भारत सरकार (केंद्र) वसूलेगी।
- लेकिन, इस कर से प्राप्त राजस्व (Revenue) को केंद्र अपने पास नहीं रखेगा, बल्कि इसे उन राज्यों के बीच बांटा जाएगा जहाँ से व्यापार हुआ है।
- संसद को यह तय करने का अधिकार दिया गया कि यह पैसा राज्यों के बीच किस फॉर्मूले के आधार पर बांटा जाएगा।
3. अनुच्छेद 286 में संशोधन (Amendment to Article 286)
यह सबसे महत्वपूर्ण बदलाव था। अनुच्छेद 286 को संशोधित करके राज्यों की कर लगाने की शक्ति पर तीन प्रमुख शर्तें लगाई गईं:
- राज्य के बाहर बिक्री: कोई भी राज्य उस खरीद-बिक्री पर टैक्स नहीं लगा सकता जो राज्य के बाहर होती है।
- आयात-निर्यात: भारत के बाहर से सामान मंगाने (Import) या बाहर भेजने (Export) के दौरान होने वाली बिक्री पर राज्य टैक्स नहीं लगा सकते।
- संसद की सर्वोच्चता: संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह कानून बनाकर "अंतर्राज्यीय व्यापार" की परिभाषा तय करे।
🟦 5️⃣ उद्देश्य और लक्ष्य (Objectives and Legislative Intent)
सरकार द्वारा इस संशोधन को लाने के पीछे स्पष्ट और दूरदर्शी उद्देश्य थे:
- दोहरे कराधान (Double Taxation) को रोकना: पहले, एक ही सामान पर उत्पादक राज्य और उपभोक्ता राज्य दोनों टैक्स लगाने की कोशिश करते थे। इससे वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती थीं। इस संशोधन का लक्ष्य इसे रोकना था।
- व्यापार में एकरूपता (Uniformity in Trade): पूरे भारत को एक साझा बाजार बनाने के लिए यह जरूरी था कि अंतर्राज्यीय व्यापार के नियम एक जैसे हों।
- न्यायिक स्पष्टता: सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग फैसलों (United Motors vs Bengal Immunity) से पैदा हुए कानूनी भ्रम को खत्म करना।
- राज्यों के राजस्व की सुरक्षा: हालांकि कर लगाने की शक्ति केंद्र ने ले ली, लेकिन इसका असली उद्देश्य गरीब उपभोक्ता राज्यों को उनका राजस्व हिस्सा दिलाना था।
🟧 6️⃣ प्रभाव और परिणाम (Impact and Outcomes)
6वें संविधान संशोधन का प्रभाव तत्काल और दीर्घकालिक दोनों रूपों में देखा गया।
1. केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम, 1956 (CST Act) का जन्म
इस संशोधन की शक्ति का प्रयोग करते हुए, संसद ने केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम (Central Sales Tax Act), 1956 पारित किया। यह कानून दशकों तक भारत में अंतर्राज्यीय व्यापार का आधार बना रहा। इसने तय किया कि जब सामान एक राज्य से दूसरे राज्य में जाएगा, तो उस पर कितना टैक्स लगेगा।
2. विशेष महत्व वाली वस्तुएं (Goods of Special Importance)
इस संशोधन ने संसद को यह शक्ति दी कि वह कुछ वस्तुओं को "अंतर्राज्यीय व्यापार के लिए विशेष महत्व" वाली घोषित कर सके (जैसे—लोहा, इस्पात, कोयला, कपास)। संसद ने इन वस्तुओं पर राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स की सीमा तय कर दी, ताकि कच्चे माल की कीमतें पूरे देश में बहुत ज्यादा न बढ़ें।
3. आर्थिक एकीकरण
इससे राज्यों के बीच "टैक्स वॉर" (Tax War) की स्थिति समाप्त हो गई। कोई भी राज्य अपने पड़ोसी राज्य के उत्पादों पर मनमाना टैक्स लगाकर उन्हें महंगा नहीं कर सकता था।
🟨 7️⃣ न्यायिक व्याख्या, समीक्षा और आलोचना (Judicial Review & Criticism)
हालांकि यह एक आवश्यक आर्थिक सुधार था, लेकिन इसे आलोचनाओं और न्यायिक समीक्षा से भी गुजरना पड़ा।
- संघीय ढांचे पर प्रहार की आलोचना: कुछ आलोचकों और राज्य सरकारों (विशेषकर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल) ने तर्क दिया कि यह संशोधन राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता (Financial Autonomy) को कम करता है। राज्यों से बिक्री कर का एक बड़ा हिस्सा छीनकर केंद्र के नियंत्रण में दे दिया गया।
- न्यायिक दृष्टिकोण: बाद के वर्षों में, अदालतों ने बार-बार 6वें संशोधन की वैधता को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रीय आर्थिक एकता के लिए संसद के पास अंतर्राज्यीय व्यापार को विनियमित करने की सर्वोच्च शक्ति होनी चाहिए।
- जटिलता: CST (Central Sales Tax) प्रणाली ने व्यवसायों के लिए कागजी कार्रवाई (जैसे C-Form भरना) को बढ़ा दिया, जिसकी आलोचना व्यापारिक समुदाय द्वारा अक्सर की जाती रही।
🟩 8️⃣ ऐतिहासिक महत्व (Historical Significance)
6वां संविधान संशोधन भारतीय कराधान इतिहास (Taxation History) में एक मील का पत्थर है।
इसका सबसे बड़ा महत्व यह है कि इसने भारत में अप्रत्यक्ष कर सुधारों (Indirect Tax Reforms) की नींव रखी। यदि 1956 में यह संशोधन न हुआ होता, तो राज्यों के बीच व्यापार करना बेहद कठिन होता।
आज के आधुनिक GST (Goods and Services Tax) व्यवस्था, जिसे 101वें संविधान संशोधन द्वारा लाया गया, की जड़ें कहीं न कहीं 6वें संशोधन में ही छिपी थीं—जहाँ केंद्र और राज्यों के बीच करों का सामंजस्य बिठाने की पहली बड़ी कोशिश की गई थी।
🟦 9️⃣ सारांश तालिका (Quick Summary Table)
| शीर्षक | विवरण |
|---|---|
| संशोधन संख्या | 6वां संविधान संशोधन अधिनियम |
| वर्ष | 1956 |
| प्रधानमंत्री | पंडित जवाहरलाल नेहरू |
| राष्ट्रपति | डॉ. राजेंद्र प्रसाद |
| मुख्य उद्देश्य | अंतर्राज्यीय व्यापार पर कर लगाने की शक्ति केंद्र को देना। |
| प्रमुख बदलाव | सातवीं अनुसूची (प्रविष्टि 92A), अनुच्छेद 269 और 286 में संशोधन। |
🟧 🔟 निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय संविधान का 6वां संशोधन, 1956, महज एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक एकता का एक दस्तावेज था। इसने राज्यों के बीच कर-युद्ध (Tax Wars) की संभावनाओं को समाप्त किया और केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय व्यापार का नियामक (Regulator) बनाया।
यद्यपि इसने राज्यों की कराधान शक्ति को सीमित किया, लेकिन व्यापक राष्ट्रीय हित में यह एक आवश्यक कदम था। इसने सुनिश्चित किया कि भारत एक साझा बाजार बना रहे, जहाँ माल की आवाजाही पर अनुचित प्रतिबंध न हों। 1956 के इस कदम ने ही आगे चलकर भारत में एकीकृत कर प्रणाली का मार्ग प्रशस्त किया। यूपीएससी (UPSC) और कानून के छात्रों के लिए, यह संशोधन केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों का एक क्लासिक उदाहरण है।
🟩 1️⃣1️⃣ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs – SEO Booster)
Q1: 6वां संविधान संशोधन अधिनियम कब पारित हुआ था?
Ans: 6वां संविधान संशोधन अधिनियम वर्ष 1956 में पारित किया गया था।
Q2: 6वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
Ans: इसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राज्यीय व्यापार (Inter-state trade) और वाणिज्य पर कर लगाने की शक्ति को राज्यों से लेकर केंद्र सरकार (संसद) को सौंपना था।
Q3: इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची में क्या जोड़ा गया?
Ans: इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची की 'संघ सूची' (Union List) में नई प्रविष्टि 92A (Entry 92A) जोड़ी गई।
Q4: 6वां संशोधन किस आयोग की सिफारिश पर लाया गया था?
Ans: यह मुख्य रूप से कराधान जांच आयोग (Taxation Enquiry Commission) की सिफारिशों पर आधारित था।
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