1. परिचय: राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया में सुधार
भारतीय संविधान का 5वां संशोधन अधिनियम, 1955 (5th Constitutional Amendment Act, 1955), भारत के संवैधानिक इतिहास में एक छोटा लेकिन प्रक्रियात्मक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव था। यह संशोधन मुख्य रूप से राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को सुगम और समयबद्ध बनाने के लिए पारित किया गया था। इसका सीधा संबंध संविधान के अनुच्छेद 3 से था।
विषय सूची
- 1. परिचय: राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया में सुधार
- 2. पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
- 3. प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया
- 4. संशोधन के प्रमुख प्रावधान
- 5. उद्देश्य और लक्ष्य
- 6. प्रभाव और परिणाम
- 7. न्यायिक व्याख्या और आलोचना
- 8. ऐतिहासिक महत्व
- 9. सारांश तालिका
- 10. निष्कर्ष
- 11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
यह संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक आवश्यक पूर्व-शर्त थी। इसके बिना, राज्यों के नक्शे को बदलने की विशाल प्रक्रिया में राज्य विधानमंडलों द्वारा अनिश्चितकालीन देरी की जा सकती थी।
2. पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
1950 के दशक में, पूरे भारत में भाषा के आधार पर नए राज्यों के गठन की मांग बहुत तेज थी। सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया था। सरकार चाहती थी कि आयोग की सिफारिशों को तेजी से लागू किया जाए और भारत के राजनीतिक मानचित्र को फिर से खींचा जाए।
हालांकि, मूल संविधान के अनुच्छेद 3 में एक तकनीकी समस्या थी। इसमें प्रावधान था कि राज्यों की सीमाओं को बदलने वाला कोई भी विधेयक राष्ट्रपति द्वारा संबंधित राज्य के विधानमंडल को उसकी राय जानने के लिए भेजा जाएगा। लेकिन, समस्या यह थी कि राज्यों द्वारा अपनी राय देने के लिए कोई समय-सीमा (Time Limit) निर्धारित नहीं थी। इसका मतलब था कि कोई भी राज्य विधानमंडल बिल को अनिश्चित काल तक रोक सकता था, जिससे पुनर्गठन की पूरी राष्ट्रीय प्रक्रिया बाधित हो सकती थी।
3. प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया
आगामी राज्य पुनर्गठन विधेयक को सुचारू रूप से पारित कराने के उद्देश्य से यह संशोधन लाया गया।
- विधेयक का नाम: संविधान (पांचवां संशोधन) विधेयक, 1955
- प्रस्ताव किसने रखा: केंद्रीय मंत्रिमंडल (प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में)
- संसद से पारित: दिसंबर 1955
- राष्ट्रपति की स्वीकृति: 24 दिसंबर 1955
4. संशोधन के प्रमुख प्रावधान
5वें संशोधन ने संविधान के अनुच्छेद 3 में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया।
बदलाव: इसने राष्ट्रपति को यह शक्ति दी कि वे राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित विधेयक पर राज्य विधानमंडल की राय जानने के लिए एक समय-सीमा निर्धारित कर सकते हैं।
प्रावधान का अर्थ:
- यदि राज्य विधानमंडल निर्धारित समय के भीतर अपनी राय दे देता है, तो संसद उस पर विचार करेगी।
- यदि राज्य निर्धारित समय के भीतर राय नहीं देता है, तो भी संसद उस विधेयक पर आगे बढ़ सकती है और उसे पारित कर सकती है।
5. उद्देश्य और लक्ष्य
इस संशोधन के पीछे सरकार के उद्देश्य पूर्णतः प्रशासनिक और व्यावहारिक थे:
- देरी से बचना: राज्यों के पुनर्गठन जैसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजना में राज्य विधानमंडलों द्वारा की जा सकने वाली देरी को रोकना।
- संसद की सर्वोच्चता: यह सुनिश्चित करना कि भारत के राजनीतिक मानचित्र को निर्धारित करने में अंतिम शक्ति संसद के पास रहे, न कि राज्यों के पास।
- प्रशासनिक सुगमता: 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के लिए रास्ता साफ करना।
6. प्रभाव और परिणाम
इस संशोधन का तत्काल और दूरगामी प्रभाव पड़ा:
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956: इस संशोधन ने 1956 के अधिनियम को समय पर पारित करना संभव बनाया, जिससे भारत में 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने।
- भविष्य के विभाजन: इसने भविष्य में भी नए राज्यों (जैसे 1960 में बम्बई का विभाजन, 1966 में पंजाब का विभाजन) के गठन की प्रक्रिया को कुशल बनाया।
7. न्यायिक व्याख्या और आलोचना
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 3 और इस संशोधन की व्याख्या करते हुए संसद की शक्तियों को स्पष्ट किया है।
बाबूलाल पराटे बनाम बॉम्बे राज्य (1959): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि राज्य की राय मांगी जानी चाहिए, लेकिन संसद उस राय को मानने के लिए बाध्य नहीं है। इसके अलावा, यदि संसद मूल विधेयक में कोई संशोधन करती है, तो उसे दोबारा राज्य के पास भेजने की आवश्यकता नहीं है।
बेरुबारी यूनियन केस (1960): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 3 संसद को राज्यों की सीमाएं बदलने की शक्ति देता है, लेकिन भारतीय क्षेत्र को किसी विदेशी देश को सौंपने की शक्ति नहीं देता। विदेशी क्षेत्र को सौंपने के लिए अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है (जो बाद में 9वें संशोधन द्वारा किया गया)।
8. ऐतिहासिक महत्व
5वां संविधान संशोधन भारत के संघीय ढांचे के विकास में एक मील का पत्थर है। यह दर्शाता है कि भारत 'विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ' (Indestructible Union of Destructible States) है। इसने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक दक्षता के लिए राज्यों की सीमाओं को पुनर्गठित करने की प्रभावी शक्ति प्रदान की।
9. सारांश तालिका
| शीर्षक | विवरण |
|---|---|
| संशोधन संख्या | 5वां संविधान संशोधन अधिनियम |
| वर्ष | 1955 |
| लागू होने की तिथि | 24 दिसंबर 1955 |
| प्रधानमंत्री | पंडित जवाहरलाल नेहरू |
| मुख्य उद्देश्य | राज्यों के पुनर्गठन विधेयक पर राज्यों की राय जानने के लिए समय-सीमा तय करना। |
| प्रमुख बदलाव |
|
10. निष्कर्ष
5वां संविधान संशोधन एक छोटा लेकिन प्रक्रियात्मक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव था। यह भारत के राजनीतिक भूगोल को बदलने वाले सबसे बड़े सुधार (राज्य पुनर्गठन) को लागू करने के लिए एक आवश्यक कदम था। इसने यह सुनिश्चित किया कि राज्यों की राय का सम्मान करते हुए भी, राष्ट्रीय हित में लिए गए निर्णयों को अनावश्यक देरी से रोका जा सके और संसद की सर्वोच्चता बनी रहे।
11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: 5वां संविधान संशोधन कब पारित हुआ था?
उत्तर: 5वां संविधान संशोधन अधिनियम 1955 में पारित हुआ था।
प्रश्न 2: 5वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रपति को यह शक्ति देना था कि वे नए राज्यों के निर्माण से संबंधित बिल पर राज्यों की राय जानने के लिए एक समय-सीमा (Time Limit) निर्धारित कर सकें।
प्रश्न 3: इस संशोधन द्वारा किस अनुच्छेद में बदलाव किया गया?
उत्तर: यह संशोधन मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 3 से संबंधित था।
प्रश्न 4: क्या संसद राज्यों की राय मानने के लिए बाध्य है?
उत्तर: नहीं, जैसा कि बाबूलाल पराटे केस में स्पष्ट किया गया, संसद राज्यों के विचार जानने के लिए बाध्य है, लेकिन उन विचारों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
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