अवध पर ब्रिटिश नियंत्रण (1764-1856) | British Awadh


क्या आपने कभी सोचा है कि भारत पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा सिर्फ़ लड़ाइयों से नहीं, बल्कि "दोस्ती" और "सुरक्षा" के नाम पर की गई संधियों से भी हुआ? भारतीय इतिहास में 1801 की संधि एक ऐसी ही महत्वपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जिसने शक्तिशाली अवध राज्य की नींव हिला दी। यह सिर्फ़ एक कागज़ का टुकड़ा नहीं था, यह अवध पर ब्रिटिश नियंत्रण (British control in Awadh) की वास्तविक शुरुआत थी।

                                                            

अवध में ब्रिटिश नियंत्रण की शुरुआत

यह वह क्षण था जब अवध के नवाब ने, जो कभी शान-ओ-शौकत के लिए जाने जाते थे, दबाव में आकर अपने प्रशासनिक अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिए। यह कहानी है कि कैसे एक 'सहायक संधि' (Subsidiary Alliance) ने अवध को आर्थिक और राजनीतिक रूप से पंगु बना दिया।

1801 की संधि से पहले अवध की स्थिति

18वीं सदी के अंत में, अवध (आज के उत्तर प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा) भारत के सबसे अमीर और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्यों में से एक था। यह दिल्ली में मुग़ल साम्राज्य और बंगाल में तेज़ी से फैल रही ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच एक 'बफर स्टेट' (Buffer State) यानी मध्यस्थ राज्य की तरह काम करता था।

यहाँ के नवाब, विशेषकर नवाब सआदत अली खान द्वितीय (Saadat Ali Khan II), कला, संस्कृति और वास्तुकला के संरक्षक थे। लखनऊ की प्रसिद्ध 'नज़ाकत' और 'नफासत' इसी दौर की देन है। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक राजनीतिक अस्थिरता भी पनप रही थी।

  • आंतरिक कलह: नवाब को गद्दी पर बैठने के लिए अंग्रेज़ों की मदद लेनी पड़ी थी, जिसने उन्हें अंग्रेज़ों का आभारी बना दिया।
  • बाहरी खतरे: पश्चिम से मराठों और उत्तर-पश्चिम से अफगानों के आक्रमण का डर हमेशा बना रहता था।

ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर-जनरल लॉर्ड वेलेज़ली (Lord Wellesley) ने इस स्थिति को पहचाना। वेलेज़ली का एक ही मकसद था: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करना। इसके लिए उसका सबसे बड़ा हथियार था - 'सहायक संधि' (Subsidiary Alliance)।

अवध में 'सहायक संधि' का जाल क्या था?

'सहायक संधि' सुनने में बहुत अच्छी लगती थी। यह एक "प्रोटेक्शन डील" (Protection Deal) की तरह थी।

अंग्रेज़ों का प्रस्ताव: "नवाब साहब, आपको मराठों और अन्य दुश्मनों से खतरा है। आप अपनी सेना हटा दीजिए। हम आपको अपनी 'बेहतर' और 'अनुशासित' सेना देंगे जो आपकी रक्षा करेगी। बदले में, आप बस उस सेना के रखरखाव का खर्च (सब्सिडी) हमें देते रहना।"

अवध के नवाब इस जाल में फँस गए। 1798 में उन्होंने सहायक संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। लेकिन यह एक मीठा ज़हर था:

  1. बढ़ता हुआ खर्च: अंग्रेज़ों ने जानबूझकर इस "सब्सिडी" की रकम को बढ़ाना शुरू कर दिया। वे सेना की टुकड़ियाँ बढ़ाते गए और बिल नवाब को भेजते रहे।
  2. कर्ज़ का बोझ: जल्द ही, नवाब पर सब्सिडी का इतना कर्ज़ चढ़ गया कि वह उसे चुका पाने में असमर्थ हो गए।
  3. आर्थिक शोषण: कंपनी ने नवाब को यह रकम चुकाने के लिए मजबूर किया, जिससे अवध का खज़ाना खाली होने लगा और आम जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ गया।

लॉर्ड वेलेज़ली तो बस इसी पल का इंतज़ार कर रहा था।

1801 की संधि की मुख्य शर्तें (जिसने सब बदल दिया)

1801 तक, नवाब सआदत अली खान पर सब्सिडी का कर्ज़ बहुत ज़्यादा बढ़ चुका था। लॉर्ड वेलेज़ली ने नवाब के सामने एक नया प्रस्ताव रखा, जो असल में एक धमकी थी: "या तो पूरा कर्ज़ चुकाओ, या फिर..."

जब नवाब ने असमर्थता जताई, तो वेलेज़ली ने उन पर 10 नवंबर 1801 को एक नई संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला। इसे ही '1801 की संधि' कहा जाता है।

यह अवध के इतिहास का सबसे काला दिन था। इसकी शर्तें सीधी और क्रूर थीं:

1. क्षेत्र का हस्तांतरण (Cession of Territory)

चूंकि नवाब सब्सिडी का 'कैश' नहीं दे पा रहे थे, इसलिए अंग्रेज़ों ने "कैश की जगह ज़मीन" ले ली। नवाब को मजबूर होकर अपने राज्य का लगभग आधा हिस्सा (लगभग 50%) ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा।

  • इसमें रुहेलखंड (Rohilkhand) और गोरखपुर-बस्ती डिवीज़न (निचला दोआब) जैसे सबसे उपजाऊ और अमीर इलाके शामिल थे।
  • यह ज़मीन अवध की आय का मुख्य स्रोत थी। इसके हाथ से जाने का मतलब था अवध की आर्थिक रीढ़ का टूट जाना।

2. सेना को भंग करना

नवाब को अपनी खुद की सेना के बड़े हिस्से को भंग करने (खत्म करने) के लिए मजबूर किया गया। उनकी जगह पूरी तरह से कंपनी की सेना ने ले ली। इसका मतलब था कि नवाब अपनी सुरक्षा के लिए भी पूरी तरह अंग्रेज़ों पर निर्भर हो गए।

3. प्रशासनिक नियंत्रण की शुरुआत

संधि में कहा गया कि बचे हुए अवध राज्य में नवाब "अच्छे शासन" (Good Governance) को लागू करेंगे और इसमें वे लखनऊ में तैनात ब्रिटिश 'रेजिडेंट' (Resident) की सलाह मानेंगे।

  • यह 'सलाह' असल में 'आदेश' होती थी।
  • ब्रिटिश रेजिडेंट एक तरह का शैडो (अदृश्य) शासक बन गया। नवाब के प्रशासनिक अधिकारों में सीधा हस्तक्षेप शुरू हो गया।
  • नवाब अब अपने ही महल में एक कैदी की तरह थे, जिनके पास उपाधि तो थी, पर शक्ति नहीं।

नवाब ने प्रशासनिक अधिकार क्यों सौंपे? (असली वजह)

अक्सर यह सवाल उठता है कि इतने बड़े राज्य के नवाब ने इतनी आसानी से अपने अधिकार क्यों सौंप दिए? क्या उन्होंने लड़ाई नहीं की?

इसका जवाब 'शक्ति' में है। 1801 तक नवाब सआदत अली खान कई मोर्चों पर घिर चुके थे:

"नवाब के पास कोई विकल्प नहीं बचा था। एक तरफ वेलेज़ली की सेना का दबाव था और दूसरी तरफ उन्हें गद्दी से हटाने की धमकी दी जा रही थी।"
  1. सैन्य असहायता: जैसा कि ऊपर बताया गया है, वे पहले ही अपनी सेना के एक बड़े हिस्से को अंग्रेज़ों के कहने पर भंग कर चुके थे। वे सैन्य रूप से अंग्रेज़ों का सामना करने की स्थिति में नहीं थे।
  2. आर्थिक दिवालियापन: अंग्रेज़ों ने जानबूझकर सब्सिडी का बोझ इतना बढ़ा दिया था कि अवध का खज़ाना लगभग खाली हो गया था। एक दिवालिया राज्य युद्ध नहीं लड़ सकता।
  3. 'रेजिडेंट' का दबाव: लखनऊ में बैठा ब्रिटिश रेजिडेंट लगातार नवाब के दरबार में साज़िशें रच रहा था और उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा था।

संक्षेप में, यह एक सुनियोजित जाल था। पहले अवध को आर्थिक रूप से कमज़ोर किया गया और फिर सैन्य रूप से असहाय बनाकर संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया।

संधि के दूरगामी परिणाम: अवध पर ब्रिटिश नियंत्रण

1801 की संधि के परिणाम अवध के लिए विनाशकारी साबित हुए। यह अवध पर ब्रिटिश नियंत्रण की वास्तविक शुरुआत थी।

  • संप्रभुता का अंत: अवध ने अपनी बाहरी और आंतरिक संप्रभुता (Sovereignty) खो दी। वह नाम मात्र का एक स्वतंत्र राज्य रह गया, जिसकी लगाम पूरी तरह से कलकत्ता में बैठे गवर्नर-जनरल के हाथ में थी।
  • प्रशासन का पतन: जब नवाब के पास ही असली शक्ति नहीं रही, तो प्रशासन में भ्रष्टाचार और अराजकता फैल गई। अंग्रेज़ों ने इसे ठीक करने की कोई कोशिश नहीं की, क्योंकि उन्हें तो 'लूट' से मतलब था।
  • किसानों का शोषण: अंग्रेज़ों को जो नए इलाके (जैसे गोरखपुर) मिले, वहाँ उन्होंने भारी लगान व्यवस्था लागू कर दी, जिससे किसान और ज़मींदार बर्बाद हो गए।
  • 1856 के विलय की नींव: यही सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था। 1801 में अंग्रेज़ों ने "अच्छे शासन" की शर्त रखी थी। अगले 55 सालों तक, अंग्रेज़ों ने अवध के प्रशासन में खुद ही हस्तक्षेप करके उसे बर्बाद किया और फिर 1856 में लॉर्ड डलहौजी ने इसी को आधार बनाया।

1801 और 1856 के विलय में क्या अंतर है?

लोग अक्सर इन दो तारीखों को लेकर भ्रमित रहते हैं।

  • 1801 (संधि): यह 'आंशिक नियंत्रण' था। अवध ने अपना आधा राज्य खो दिया और बचे हुए राज्य पर प्रशासनिक अधिकार (Administrative Rights) खो दिए। लेकिन 'नवाब' का पद बना रहा।
  • 1856 (विलय/Annexation): यह 'पूर्ण कब्ज़ा' था। लॉर्ड डलहौजी ने 1801 की संधि को तोड़ते हुए, नवाब वाजिद अली शाह पर "कुशासन" (Misgovernance) का आरोप लगाया और अवध को पूरी तरह से ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। नवाब को कलकत्ता निर्वासित कर दिया गया।

निष्कर्ष: 1801 की संधि वह पहली कील थी, जिसने अवध के ताबूत को तैयार किया। इसने वह ज़मीन तैयार की जिस पर 55 साल बाद 1856 में लॉर्ड डलहौजी ने अवध के पूर्ण विलय (Annexation) की इमारत खड़ी कर दी। यह संधि भारत में ब्रिटिश विस्तारवाद का एक क्लासिक उदाहरण है, जहाँ 'दोस्ती' और 'सुरक्षा' के चोले में साम्राज्यवाद छिपा हुआ था।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न: 1801 की संधि के समय अवध का नवाब कौन था?

उत्तर: 1801 की संधि के समय अवध के नवाब सआदत अली खान द्वितीय (Saadat Ali Khan II) थे।

प्रश्न: 1801 की संधि पर किसने हस्ताक्षर किए?

उत्तर: इस संधि पर अवध के नवाब सआदत अली खान द्वितीय और ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से गवर्नर-जनरल लॉर्ड वेलेज़ली के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए।

प्रश्न: अवध में सहायक संधि (Subsidiary Alliance) का क्या मतलब था?

उत्तर: अवध में सहायक संधि का मतलब था कि अवध अपनी बाहरी सुरक्षा के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना पर निर्भर रहेगा और उस सेना के रखरखाव के लिए कंपनी को पैसा (सब्सिडी) देगा। इसके बदले में, नवाब को अपनी सेना भंग करनी पड़ी और लखनऊ में एक ब्रिटिश रेजिडेंट को रखना पड़ा।

प्रश्न: 1801 की संधि के तहत अवध ने कौन से इलाके खो दिए?

उत्तर: नवाब को सब्सिडी के बदले में अपना लगभग आधा राज्य अंग्रेज़ों को सौंपना पड़ा, जिसमें रुहेलखंड और गोरखपुर और इलाहाबाद सहित निचले दोआब के बेहद उपजाऊ इलाके शामिल थे।

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