Constitutional Development 1773-1947 (भारत का संवैधानिक विकास)

इस लेख में हम भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा लागू किए गए उन महत्वपूर्ण अधिनियमों (Acts) का गहराई से विश्लेषण करेंगे, जिन्होंने धीरे-धीरे भारत के आधुनिक संवैधानिक ढांचे की नींव रखी।

Constitutional Development 1773-1947 (भारत का संवैधानिक विकास)


भारत का वर्तमान संविधान एक दिन में नहीं बना। इसकी जड़ें ब्रिटिश शासन के दौरान पारित हुए विभिन्न अधिनियमों और सुधारों में छिपी हैं। भारत का संवैधानिक विकास (Constitutional Development of India) एक क्रमिक प्रक्रिया थी, जो 1773 में ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण के पहले प्रयास से शुरू होकर 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम तक चली। इस पूरी संविधान निर्माण प्रक्रिया को हम दो मुख्य भागों में बांट सकते हैं: कंपनी का शासन (1773-1858) और ताज का शासन (1858-1947)।


भाग 1: कंपनी का शासन (Company Rule) — 1773 से 1858

1757 में प्लासी और 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक निकाय से एक क्षेत्रीय शक्ति बन गई। कंपनी के अधिकारियों के भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के कारण कंपनी वित्तीय संकट में घिर गई। तब ब्रिटिश संसद ने कंपनी के मामलों को नियंत्रित (Regulate) करने का निर्णय लिया।

रेग्युलेटिंग एक्ट (Regulating Act), 1773

यह ब्रिटिश संसद द्वारा भारत में कंपनी के मामलों को नियंत्रित और विनियमित करने का पहला बड़ा कदम था।

  • केंद्रीय प्रशासन की नींव: इस एक्ट ने पहली बार भारत में एक केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी। बंगाल के गवर्नर को 'बंगाल का गवर्नर-जनरल' (Governor-General of Bengal) बनाया गया (पहले गवर्नर-जनरल लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्स थे)।
  • शक्तियों का एकीकरण: बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया, हालाँकि उन्हें कुछ मामलों में स्वतंत्रता प्राप्त थी।
  • सुप्रीम कोर्ट की स्थापना: 1774 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे।
  • कंपनी पर नियंत्रण: कंपनी के निदेशकों (Court of Directors) के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया कि वे भारत से संबंधित सभी राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को दें।

पिट्स इंडिया एक्ट (Pitt's India Act), 1784

1773 के एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री विलियम पिट द्वारा यह एक्ट लाया गया। इसने भारत में 'दोहरी सरकार' या द्वैध शासन (Dual Control) की शुरुआत की।

  • कार्यों का विभाजन: कंपनी के राजनीतिक (Political) और वाणिज्यिक (Commercial) कार्यों को अलग-अलग कर दिया गया।
  • बोर्ड ऑफ कंट्रोल (Board of Control): राजनीतिक मामलों (जैसे सैन्य, नागरिक प्रशासन और राजस्व) के प्रबंधन के लिए 'बोर्ड ऑफ कंट्रोल' नामक एक नए निकाय का गठन किया गया। यह सीधे ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।
  • कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (Court of Directors): कंपनी के व्यापारिक मामलों का प्रबंधन कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के हाथ में ही रहा।

चार्टर एक्ट्स (Charter Acts) की श्रृंखला (1793 - 1853)

ये अधिनियम हर 20 साल बाद कंपनी के चार्टर (अधिकार पत्र) का नवीनीकरण करने के लिए लाए जाते थे, लेकिन हर एक्ट के साथ कंपनी के अधिकारों में कटौती और ब्रिटिश संसद का नियंत्रण बढ़ता गया।

चार्टर एक्ट, 1813:

  • एकाधिकार की समाप्ति: चीन के साथ व्यापार और चाय के व्यापार को छोड़कर, कंपनी का भारत के साथ व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। अन्य ब्रिटिश व्यापारियों को भी भारत से व्यापार की अनुमति मिली।
  • शिक्षा के लिए प्रावधान: पहली बार भारतीय साहित्य के पुनरुद्धार और विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए सालाना 1 लाख रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया।
  • ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।

चार्टर एक्ट, 1833 (अत्यंत महत्वपूर्ण):

  • केंद्रीयकरण का शिखर: बंगाल के गवर्नर-जनरल को 'भारत का गवर्नर-जनरल' (Governor-General of India) बना दिया गया (लॉर्ड विलियम बेंटिक पहले भारत के गवर्नर-जनरल बने)। उसे पूरे ब्रिटिश भारत के लिए कानून बनाने की असीमित शक्तियाँ दी गईं।
  • कंपनी का अंत (व्यापारिक रूप से): ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक गतिविधियाँ पूरी तरह समाप्त कर दी गईं। अब वह केवल एक प्रशासनिक निकाय (Administrative Body) बन गई।
  • विधि आयोग (Law Commission): भारतीय कानूनों को संहिताबद्ध (codify) करने के लिए एक विधि आयोग (लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में) का गठन किया गया।
  • खुली प्रतियोगिता का प्रयास: सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता आयोजित करने का प्रयास किया गया, लेकिन कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण यह लागू नहीं हो सका।

चार्टर एक्ट, 1853 (अंतिम चार्टर):

  • सिविल सेवा: सिविल सेवा में भर्ती के लिए खुली प्रतियोगिता (Open Competition) की शुरुआत की गई (मैकाले समिति, 1854)। यह भारतीयों के लिए भी खोल दी गई।
  • विधायी कार्य: पहली बार गवर्नर-जनरल की परिषद के विधायी (Legislative) और कार्यकारी (Executive) कार्यों को अलग किया गया। 'भारतीय (केंद्रीय) विधान परिषद' की स्थापना की गई, जिसने एक छोटी संसद की तरह काम करना शुरू किया।
  • इस एक्ट ने कंपनी के शासन को किसी निश्चित अवधि के लिए नहीं बढ़ाया, जो इस बात का संकेत था कि कंपनी का शासन कभी भी समाप्त किया जा सकता है।

भाग 2: ताज का शासन (Crown Rule) — 1858 से 1947

1857 के सिपाही विद्रोह (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) ने ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया। ब्रिटिश संसद को एहसास हुआ कि कंपनी के हाथों में भारत का प्रशासन अब सुरक्षित नहीं है। कंपनी शासन और ताज शासन में अंतर मुख्य रूप से सीधे नियंत्रण का था।

भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act), 1858

इसे 'Act for the Better Government of India' (भारत के बेहतर शासन के लिए अधिनियम) भी कहा जाता है।

  • कंपनी शासन का अंत: ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया गया और भारत का शासन सीधे ब्रिटिश महारानी (Crown) के हाथों में चला गया।
  • द्वैध शासन समाप्त: पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा शुरू की गई 'बोर्ड ऑफ कंट्रोल' और 'कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स' की दोहरी व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
  • 'भारत सचिव' (Secretary of State for India): एक नए पद 'भारत राज्य सचिव' का सृजन किया गया, जो ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।
  • वायसराय (Viceroy): भारत के गवर्नर-जनरल को अब 'वायसराय' (Viceroy) की उपाधि दी गई, जो भारत में क्राउन का सीधा प्रतिनिधि था (लॉर्ड कैनिंग पहले वायसराय बने)।

इंडियन काउंसिल्स एक्ट (1861, 1892)

1857 के विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने महसूस किया कि शासन चलाने के लिए भारतीयों का सहयोग लेना आवश्यक है।

  • 1861 का एक्ट: इसने कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत की। वायसराय ने अपनी विधान परिषद में कुछ भारतीयों को 'गैर-सरकारी सदस्यों' (Non-Official Members) के रूप में नामांकित किया। इसने मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी को विधायी शक्तियाँ वापस देकर विकेंद्रीकरण (Decentralization) की प्रक्रिया शुरू की।
  • 1892 का एक्ट: इसने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी (non-official) सदस्यों की संख्या बढ़ाई। पहली बार (अप्रत्यक्ष रूप से) 'चुनाव' के सिद्धांत को स्वीकार किया गया। सदस्यों को बजट पर बहस करने का अधिकार मिला, लेकिन वे मतदान नहीं कर सकते थे।

मार्ले-मिंटो सुधार (Indian Councils Act), 1909

तत्कालीन भारत सचिव लॉर्ड मॉर्ले और वायसराय लॉर्ड मिंटो के नाम पर ये सुधार लाए गए।

  • परिषदों का विस्तार: केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों का आकार बढ़ाया गया।
  • पूरक प्रश्न: सदस्यों को बजट पर बहस करने के साथ-साथ पूरक प्रश्न (Supplementary Questions) पूछने का अधिकार भी दिया गया।
  • सांप्रदायिक निर्वाचन (Communal Electorate): इस एक्ट का सबसे विवादास्पद और दूरगामी प्रभाव वाला प्रावधान 'पृथक/सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल' की शुरुआत थी। मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए, जहाँ केवल मुस्लिम मतदाता ही मुस्लिम उम्मीदवारों को वोट दे सकते थे। इसे 'फूट डालो और राज करो' की नीति का एक प्रमुख अंग माना जाता है।

मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (Government of India Act), 1919

विश्व युद्ध I के बाद और भारत में बढ़ते राष्ट्रवादी दबाव के बीच, भारत सचिव एडविन मोंटेग्यू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने ये सुधार पेश किए।

  • उत्तरदायी सरकार: पहली बार, एक्ट की प्रस्तावना में भारत में क्रमिक रूप से 'उत्तरदायी सरकार' (Responsible Government) की स्थापना का लक्ष्य घोषित किया गया।
  • प्रांतीय द्वैध शासन (Diarchy): प्रांतों में 'द्वैध शासन प्रणाली 1919' लागू की गई। प्रांतीय विषयों को दो भागों में बांटा गया:
    1. आरक्षित (Reserved): जैसे वित्त, पुलिस, न्याय। इनका प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद की सलाह से करता था।
    2. हस्तांतरित (Transferred): जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि। इनका प्रशासन गवर्नर भारतीय मंत्रियों की सलाह से करता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे।
  • केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था (Bicameralism): केंद्रीय विधान परिषद की जगह द्विसदनीय व्यवस्था (राज्य परिषद और विधान सभा) शुरू की गई।
  • प्रत्यक्ष निर्वाचन: पहली बार देश में प्रत्यक्ष निर्वाचन (Direct Elections) की शुरुआत हुई, हालाँकि मताधिकार बहुत सीमित था (संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर)।

भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act), 1935

यह ब्रिटिश संसद द्वारा पारित सबसे लंबा और विस्तृत अधिनियम था। यह साइमन कमीशन, गोलमेज सम्मेलनों और श्वेत पत्र पर आधारित था। यह अधिनियम आधुनिक भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्रोत है।

  • अखिल भारतीय संघ: इसने एक 'अखिल भारतीय संघ' (All-India Federation) की स्थापना का प्रावधान किया, जिसमें ब्रिटिश प्रांतों और रियासतों (Princely States) को शामिल होना था। (हालांकि, रियासतों के शामिल न होने के कारण यह संघ कभी अस्तित्व में नहीं आया)।
  • प्रांतीय स्वायत्तता (Provincial Autonomy): यह इस एक्ट का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था। प्रांतों में 'द्वैध शासन' को समाप्त कर दिया गया और 'प्रांतीय स्वायत्तता' शुरू की गई। प्रांतों को अपने आंतरिक मामलों में स्वायत्तता दी गई और मंत्री विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बने।
  • केंद्र में द्वैध शासन: प्रांतों से समाप्त कर द्वैध शासन को केंद्र में लागू करने का प्रावधान किया गया (जो कभी लागू नहीं हुआ)।
  • शक्तियों का विभाजन: शक्तियों को तीन सूचियों में बांटा गया: संघीय सूची (Federal List), प्रांतीय सूची (Provincial List) और समवर्ती सूची (Concurrent List)।
  • RBI और फेडरल कोर्ट: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना और एक संघीय न्यायालय (Federal Court) की स्थापना (1937 में) का प्रावधान किया गया।

संबंधित लेख (स्वतंत्रता संग्राम)

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (Indian Independence Act), 1947

माउंटबेटन योजना के आधार पर, ब्रिटिश संसद ने यह अंतिम अधिनियम पारित किया।

  • स्वतंत्रता: 15 अगस्त 1947 को भारत को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित किया गया।
  • विभाजन: भारत का विभाजन कर दो स्वतंत्र डोमिनियन—भारत और पाकिस्तान—का सृजन किया गया।
  • वायसराय का पद समाप्त: वायसराय का पद समाप्त कर दिया गया और दोनों डोमिनियन के लिए एक-एक गवर्नर-जनरल का पद बनाया गया।
  • संविधान सभा: दोनों देशों की संविधान सभाओं को अपने-अपने देश के लिए संविधान बनाने और किसी भी ब्रिटिश कानून को रद्द करने की पूर्ण शक्ति दी गई।

सारांश तालिका: प्रमुख अधिनियम एक नजर में

वर्ष अधिनियम / सुधार प्रमुख विशेषता / प्रभाव
1773 Regulating Act पहला नियंत्रक कदम; बंगाल का गवर्नर-जनरल बना।
1784 Pitt's India Act द्वैध शासन (बोर्ड ऑफ कंट्रोल); राजनीतिक/वाणिज्यिक कार्य अलग।
1833 Charter Act कंपनी का व्यापार पूर्णतः समाप्त; भारत का गवर्नर-जनरल बना।
1858 Government of India Act कंपनी शासन का अंत; ताज का शासन शुरू; भारत सचिव का पद।
1909 Morley-Minto Reforms सांप्रदायिक निर्वाचन मंडल (मुसलमानों के लिए) की शुरुआत।
1919 Montagu-Chelmsford Reforms प्रांतों में द्वैध शासन (Diarchy); केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था।
1935 Government of India Act प्रांतीय स्वायत्तता; संविधान का प्रमुख स्रोत
1947 Indian Independence Act भारत की स्वतंत्रता और विभाजन।

निष्कर्ष: संवैधानिक विकास की विरासत

1773 के रेगुलेटिंग एक्ट से लेकर 1947 के स्वतंत्रता अधिनियम तक की यह 174 साल की लंबी यात्रा केवल प्रशासनिक परिवर्तनों की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत के एक राष्ट्र के रूप में उभरने की कहानी है। हालाँकि इन अधिनियमों का मुख्य उद्देश्य भारत पर ब्रिटिश पकड़ को मजबूत करना था, लेकिन अनजाने में ही इन्होंने भारत को संसदीय प्रणाली, कानून का शासन, शक्तियों का विभाजन और एक संघीय ढाँचा जैसी अवधारणाएँ दीं। भारत सरकार अधिनियम 1935 तो भारतीय संविधान का ब्लूप्रिंट ही बन गया। इस प्रकार, भारत का संवैधानिक विकास, औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों के भीतर से ही भविष्य के एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य की नींव तैयार कर रहा था।


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

Q1: भारत में द्वैध शासन (Diarchy) क्या था?

A: द्वैध शासन (Diarchy) का अर्थ है 'दो लोगों का शासन'। इसे मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार 1919 द्वारा प्रांतों में लागू किया गया था। इसमें प्रांतीय विषयों को दो भागों में बांटा गया था—'आरक्षित' (Reserved) और 'हस्तांतरित' (Transferred)। आरक्षित विषय (जैसे वित्त, पुलिस) गवर्नर के सीधे नियंत्रण में थे, जबकि हस्तांतरित विषय (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य) भारतीय मंत्रियों को दिए गए थे, जो विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी थे।

Q2: 'सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल' (Communal Electorate) का क्या अर्थ है?

A: इसकी शुरुआत मार्ले-मिंटो सुधार 1909 के तहत की गई थी। इसका मतलब था कि एक विशेष समुदाय (जैसे मुसलमान) के लिए आरक्षित सीटों पर केवल उसी समुदाय के मतदाता वोट डाल सकते थे। इसे अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति के रूप में देखा गया, जिसने अंततः भारत के विभाजन की नींव रखने में भूमिका निभाई।

Q3: 1935 के अधिनियम को भारतीय संविधान का ब्लूप्रिंट क्यों कहा जाता है?

A: क्योंकि भारतीय संविधान के कई प्रमुख प्रावधान सीधे भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिए गए हैं। इनमें शक्तियों के विभाजन की तीन सूचियाँ (संघीय, प्रांतीय, समवर्ती), संघीय ढाँचा, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका की संरचना (फेडरल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट) और लोक सेवा आयोग (PSC) शामिल हैं।

Q4: कंपनी शासन और ताज शासन में मुख्य अंतर क्या था?

A: कंपनी शासन (1773-1858) में, भारत पर शासन ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किया जाता था, जिस पर ब्रिटिश संसद 'बोर्ड ऑफ कंट्रोल' (पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 के बाद) के माध्यम से आंशिक नियंत्रण रखती थी। ताज शासन (1858-1947) में, 1857 के विद्रोह के बाद, कंपनी को समाप्त कर दिया गया और भारत का प्रशासन सीधे ब्रिटिश क्राउन (महारानी) ने 'भारत सचिव' (Secretary of State) के माध्यम से अपने हाथों में ले लिया, जो ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।

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