🟩 1️⃣ परिचय (Introduction)
भारतीय संविधान का 21वां संशोधन अधिनियम (21st Constitutional Amendment Act), जो 1967 में लागू हुआ, भारत के भाषाई परिदृश्य और संवैधानिक समावेशिता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। यह एक महत्वपूर्ण भारतीय संविधान संशोधन था। इस संशोधन का एकमात्र और स्पष्ट उद्देश्य सिंधी भाषा (Sindhi Language) को संविधान की आठवीं अनुसूची (Eighth Schedule) में शामिल करना था।
यह संशोधन भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के बाद उत्पन्न हुई विशेष परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में लाया गया था। इसने न केवल सिंधी भाषी समुदाय को मान्यता दी बल्कि भारत की समृद्ध भाषाई विविधता को संवैधानिक संरक्षण भी प्रदान किया। यह दर्शाता है कि भारतीय संविधान एक 'जीवंत दस्तावेज' है जो अपने नागरिकों की आकांक्षाओं को समायोजित करने के लिए समय के साथ विकसित होता रहता है।
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- 1. परिचय: 21वां संविधान संशोधन क्या है?
- 2. पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
- 3. प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया
- 4. संशोधन के प्रमुख प्रावधान (सिंधी भाषा)
- 5. उद्देश्य और लक्ष्य
- 6. प्रभाव और परिणाम
- 7. न्यायिक व्याख्या और समीक्षा
- 8. ऐतिहासिक महत्व
- 9. सारांश तालिका (Quick Summary)
- 10. निष्कर्ष
- 11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
🟧 2️⃣ पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Background)
21वें संविधान संशोधन की आवश्यकता को समझने के लिए हमें 1947 में भारत के विभाजन की त्रासदी और उसके बाद के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को देखना होगा।
विभाजन और सिंधी समुदाय का विस्थापन
1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन भी हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का निर्माण हुआ। अविभाजित भारत का 'सिंध' प्रांत पूरी तरह से पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। सिंध, सिंधी भाषा और संस्कृति का ऐतिहासिक घर था। विभाजन के कारण, लाखों की संख्या में सिंधी हिंदुओं को अपना घर-बार छोड़कर भारत में शरणार्थी के रूप में आना पड़ा। ये सिंधी भाषी लोग मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में बस गए। हालांकि, वे अपनी भूमि से विस्थापित हो गए थे, लेकिन वे अपनी समृद्ध भाषा, साहित्य और संस्कृति को अपने साथ भारत लाए थे।
आठवीं अनुसूची का मूल स्वरूप
जब 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ, तब इसकी आठवीं अनुसूची में केवल 14 भाषाओं को राष्ट्रीय महत्व की भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई थी। सिंधी भाषा, जिसके बोलने वालों की एक बड़ी संख्या भारत में मौजूद थी, इस मूल सूची में शामिल नहीं थी।
मान्यता के लिए आंदोलन
1950 के दशक से ही भारत में सिंधी समुदाय के नेताओं, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए एक शांतिपूर्ण और निरंतर अभियान शुरू किया। उन्होंने तर्क दिया कि संवैधानिक मान्यता न केवल उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करेगी, बल्कि भाषा के विकास को भी प्रोत्साहित करेगी। यह मांग समय के साथ जोर पकड़ती गई।
🟨 3️⃣ प्रस्ताव और पारित होने की प्रक्रिया (Proposal & Passage)
सिंधी समुदाय की निरंतर मांगों और भाषाई समावेशिता की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में संशोधन करने का निर्णय लिया। यह संविधान संशोधन की प्रक्रिया के तहत किया गया।
- विधेयक का प्रस्तुतीकरण: 'संविधान (इक्कीसवां संशोधन) विधेयक, 1967' को संसद में पेश किया गया।
- संसदीय बहस: संसद के दोनों सदनों में इस विधेयक पर बहस हुई और इसे व्यापक राजनीतिक सहमति प्राप्त थी।
- पारित होना: विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों द्वारा आवश्यक विशेष बहुमत से पारित कर दिया गया।
- राष्ट्रपति की सहमति: संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद, विधेयक को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पास सहमति के लिए भेजा गया।
- लागू होना: राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद, यह विधेयक 10 अप्रैल, 1967 को 'संविधान (इक्कीसवां संशोधन) अधिनियम, 1967' के रूप में लागू हुआ।
🟩 4️⃣ संशोधन के प्रमुख प्रावधान (Key Provisions)
21वां संविधान संशोधन एक बहुत ही संक्षिप्त और केंद्रित संशोधन था। इसका केवल एकमात्र प्रावधान था:
"संविधान की आठवीं अनुसूची में संशोधन करते हुए, सूची में '14. उर्दू' के बाद '15. सिंधी' को जोड़ा गया।"
सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची (जो संविधान की 12 अनुसूचियों में से एक है) में 15वीं भाषा के रूप में जोड़ने का अर्थ था कि इसे अब वे सभी लाभ और मान्यताएँ प्राप्त होंगी जो अन्य 14 भाषाओं को प्राप्त थीं। इसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार की योग्यता, सिविल सेवा परीक्षाओं में एक वैकल्पिक विषय के रूप में चुनने का अधिकार और राजभाषा आयोग में प्रतिनिधित्व शामिल था।
🟦 5️⃣ उद्देश्य और लक्ष्य (Objectives)
- सांस्कृतिक पहचान को मान्यता: इसका प्राथमिक उद्देश्य भारत में लाखों सिंधी भाषी नागरिकों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को संवैधानिक मान्यता और सम्मान प्रदान करना था।
- राष्ट्रीय एकीकरण: विभाजन से विस्थापित हुए एक समुदाय को यह विश्वास दिलाना था कि वे भारत के अभिन्न अंग हैं।
- भाषा का संरक्षण: संवैधानिक संरक्षण देकर, सरकार ने इसके साहित्य, शिक्षण और उपयोग को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने की जिम्मेदारी ली।
- समान अवसर: सिंधी भाषी छात्रों और नागरिकों को शिक्षा और रोजगार में अन्य प्रमुख भाषा-भाषियों के बराबर अवसर प्रदान करना।
🟧 6️⃣ प्रभाव और परिणाम (Impact & Outcomes)
21वें संशोधन का प्रभाव कानूनी से अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक था।
- सामाजिक प्रभाव: इस संशोधन ने सिंधी समुदाय के मनोबल को बढ़ाया और भारत के साथ उनके एकीकरण को मजबूत किया। उन्हें महसूस हुआ कि उनकी पहचान को अब एक स्थायी 'संवैधानिक घर' मिल गया है।
- शैक्षणिक प्रभाव: मान्यता मिलने के बाद सिंधी साहित्य को नया प्रोत्साहन मिला। साहित्य अकादमी ने सिंधी लेखकों को पुरस्कार देना शुरू किया और स्कूलों-विश्वविद्यालयों में सिंधी भाषा के अध्ययन को बल मिला।
- संवैधानिक मिसाल: इस संशोधन ने स्थापित किया कि आठवीं अनुसूची एक 'स्थिर सूची' नहीं है। इसने भविष्य में 71वें संशोधन (1992) और 92वें संशोधन (2003) द्वारा अन्य भाषाओं को जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया।
🟨 7️⃣ न्यायिक व्याख्या और समीक्षा (Judicial Review)
संविधान के कई अन्य संशोधनों के विपरीत, 21वां संविधान संशोधन लगभग पूरी तरह से निर्विवाद (non-controversial) रहा है। इसे कभी भी किसी बड़ी न्यायिक चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि यह किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता था और न ही यह संविधान की 'मूल संरचना' के खिलाफ था।
दिलचस्प बात यह है कि यह संशोधन उसी वर्ष (1967) आया जब गोलकनाथ केस (1967) का ऐतिहासिक निर्णय आया, जिसने संसद की संशोधन शक्तियों पर बहस छेड़ दी थी। हालाँकि, इस संशोधन का उस बहस से कोई सीधा संबंध नहीं था। यह बहस आगे चलकर केशवानंद भारती केस (1973) में मूल संरचना सिद्धांत के रूप में विकसित हुई।
🟩 8️⃣ ऐतिहासिक महत्व (Historical Significance)
- विभाजन के घावों पर मरहम: इसने विभाजन से विस्थापित समुदाय को सम्मान देकर राष्ट्रीय मुख्यधारा में एकीकृत करने में मदद की।
- भाषाई विविधता का उत्सव: इसने 'अनेकता में एकता' के भारतीय आदर्श को और मजबूत किया।
- संविधान की जीवंतता: इसने साबित किया कि भारतीय संविधान एक लचीला दस्तावेज है जो सामाजिक वास्तविकताओं के अनुसार खुद को ढाल सकता है।
- भविष्य के संशोधनों का अग्रदूत: यह आठवीं अनुसूची में पहला विस्तार था, जिसने भविष्य में और भाषाओं को शामिल करने का रास्ता खोला।
इन्हें भी जानें:
🟦 9️⃣ सारांश तालिका (Quick Summary Table)
| विवरण | तथ्य |
|---|---|
| संशोधन संख्या | 21वां संविधान संशोधन अधिनियम |
| वर्ष | 1967 |
| लागू होने की तिथि | 10 अप्रैल, 1967 |
| तत्कालीन प्रधानमंत्री | श्रीमती इंदिरा गांधी |
| तत्कालीन राष्ट्रपति | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
| मुख्य उद्देश्य | सिंधी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल करना। |
🟧 🔟 निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय संविधान का 21वां संशोधन (1967) आकार में छोटा लेकिन भावना में बहुत बड़ा था। यह केवल एक भाषा को सूची में जोड़ने का तकनीकी कार्य नहीं था; यह एक समुदाय को राष्ट्र द्वारा दिए गए सम्मान और स्वीकृति का प्रतीक था। यह संविधान संशोधन भारत के भाषाई लोकतंत्र और इसकी सामासिक संस्कृति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है।
🟩 1️⃣1️⃣ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: 21वां संविधान संशोधन कब पारित हुआ था?
उत्तर: 21वां संविधान संशोधन अधिनियम 10 अप्रैल, 1967 को राष्ट्रपति की सहमति के बाद लागू हुआ।
प्रश्न 2: 21वें संशोधन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: इसका एकमात्र मुख्य उद्देश्य सिंधी भाषा (Sindhi language) को संविधान की आठवीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल करना था।
प्रश्न 3: 1967 में सिंधी भाषा को ही क्यों जोड़ा गया?
उत्तर: 1947 में विभाजन के बाद सिंध प्रांत पाकिस्तान में चला गया, जिससे लाखों सिंधी भाषी लोग भारत आए। उनकी भाषा को संवैधानिक संरक्षण और राष्ट्रीय मान्यता देने के लिए 1967 में इसे जोड़ा गया।
प्रश्न 4: 21वें संशोधन के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर: 1967 में 21वें संशोधन के समय भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं।
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