भारत के संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties) को भी शामिल किया गया है, ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों की जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया जा सके।
मौलिक कर्तव्यों को संविधान में 42वें संविधान संशोधन, 1976 के माध्यम से जोड़ा गया।
🕰️ मौलिक कर्तव्यों का इतिहास
मौलिक कर्तव्य संविधान के मूल प्रारूप का हिस्सा नहीं थे। इन्हें 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में, 42वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 51A में जोड़ा गया।
यह संशोधन स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
यह संशोधन स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
📋 मौलिक कर्तव्यों की संख्या
शुरुआत में 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा एक और कर्तव्य जोड़ा गया, जिससे इनकी कुल संख्या 11 हो गई।
📘 अनुच्छेद 51A के तहत मौलिक कर्तव्यों की सूची:
1. संविधान का पालन और आदर करना:
संविधान, राष्ट्रीय प्रतीकों (जैसे झंडा, राष्ट्रगान) का सम्मान करना。
2. स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को अपनाना:
स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और मूल्यों की रक्षा करना。
3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा:
देश विरोधी गतिविधियों का विरोध करना, भारत को एकजुट रखना。
4. देश की रक्षा और सेवा के लिए तत्पर रहना:
सेना, आपातकाल या युद्ध जैसी स्थिति में सहयोग देना。
5. देशवासियों में भाईचारे की भावना विकसित करना:
धार्मिक, जातीय, भाषाई भेदभाव को न बढ़ावा देना。
6. महिलाओं का सम्मान और उनका संरक्षण:
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना, हिंसा और भेदभाव का विरोध करना。
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा:
पेड़-पौधे, जल, वन्यजीव और पर्यावरण को संरक्षित करना。
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवतावादी सोच को अपनाना:
अंधविश्वास से दूर रहना, विज्ञान, मानवता और सुधार को स्वीकारना。
9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना:
स्कूल, सड़क, अस्पताल आदि का संरक्षण, नुकसान नहीं पहुंचाना。
10. व्यक्तिगत और सामूहिक उत्कृष्टता की ओर बढ़ना:
खुद को और समाज को बेहतर बनाना。
11. (2002 में जोड़ा गया) 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा देना:
यह प्रत्येक अभिभावक का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को शिक्षा दिलाए।
संविधान, राष्ट्रीय प्रतीकों (जैसे झंडा, राष्ट्रगान) का सम्मान करना。
2. स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को अपनाना:
स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और मूल्यों की रक्षा करना。
3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा:
देश विरोधी गतिविधियों का विरोध करना, भारत को एकजुट रखना。
4. देश की रक्षा और सेवा के लिए तत्पर रहना:
सेना, आपातकाल या युद्ध जैसी स्थिति में सहयोग देना。
5. देशवासियों में भाईचारे की भावना विकसित करना:
धार्मिक, जातीय, भाषाई भेदभाव को न बढ़ावा देना。
6. महिलाओं का सम्मान और उनका संरक्षण:
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना, हिंसा और भेदभाव का विरोध करना。
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा:
पेड़-पौधे, जल, वन्यजीव और पर्यावरण को संरक्षित करना。
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवतावादी सोच को अपनाना:
अंधविश्वास से दूर रहना, विज्ञान, मानवता और सुधार को स्वीकारना。
9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना:
स्कूल, सड़क, अस्पताल आदि का संरक्षण, नुकसान नहीं पहुंचाना。
10. व्यक्तिगत और सामूहिक उत्कृष्टता की ओर बढ़ना:
खुद को और समाज को बेहतर बनाना。
11. (2002 में जोड़ा गया) 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा देना:
यह प्रत्येक अभिभावक का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को शिक्षा दिलाए।
⚖️ मौलिक कर्तव्यों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
🧑⚖️ 1. ए.आई.आर. 1986 एससी 180 (Bijoe Emmanuel Case):
कुछ छात्रों ने राष्ट्रगान गाने से इनकार किया (धार्मिक कारणों से)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा: मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ, जब तक असम्मान नहीं किया गया。
🧑⚖️ 2. AIIMS Students Union v. AIIMS (2001):
कोर्ट ने कहा कि मौलिक कर्तव्यों को यदि कानून के द्वारा लागू किया जाए, तो वे नागरिकों पर बाध्यकारी हो सकते हैं。
⚖️ 3. MC Mehta v. Union of India (1987):
पर्यावरण से संबंधित मौलिक कर्तव्यों पर कोर्ट ने सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
कुछ छात्रों ने राष्ट्रगान गाने से इनकार किया (धार्मिक कारणों से)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा: मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ, जब तक असम्मान नहीं किया गया。
🧑⚖️ 2. AIIMS Students Union v. AIIMS (2001):
कोर्ट ने कहा कि मौलिक कर्तव्यों को यदि कानून के द्वारा लागू किया जाए, तो वे नागरिकों पर बाध्यकारी हो सकते हैं。
⚖️ 3. MC Mehta v. Union of India (1987):
पर्यावरण से संबंधित मौलिक कर्तव्यों पर कोर्ट ने सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
📌 मौलिक कर्तव्य – कानून की दृष्टि में
मौलिक कर्तव्य न्यायालय में प्रत्यक्ष रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। लेकिन यदि किसी नागरिक का व्यवहार इन कर्तव्यों के विरुद्ध है, और कोई विशेष कानून बना है, तो उसे सजा दी जा सकती है।
उदाहरण: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, सार्वजनिक संपत्ति क्षति अधिनियम आदि।
उदाहरण: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, सार्वजनिक संपत्ति क्षति अधिनियम आदि।
🗣️ प्रमुख विचारकों के कथन
मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties) को लेकर भारत के विभिन्न न्यायविदों, विचारकों, और संविधान निर्माताओं ने समय-समय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
🔷 डॉ. भीमराव अंबेडकर
"अधिकार तभी तक टिके रहते हैं जब तक वे कर्तव्यों से संतुलित होते हैं। अधिकार और कर्तव्यों में संतुलन ही किसी भी लोकतंत्र की असली शक्ति है।"
व्याख्या: अंबेडकर मानते थे कि केवल अधिकारों पर ज़ोर देने से नागरिकों का दायित्व समाप्त नहीं होता। उन्हें राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को भी निभाना चाहिए।
🔷 महात्मा गांधी
"कर्तव्य के बिना अधिकार, बिना आत्मा के शरीर जैसा है।"
व्याख्या: गांधी जी का मानना था कि यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो वह अपने अधिकारों का सही उपयोग नहीं कर सकता।
🔷 पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
"देश को बदलना है तो नागरिकों को अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना होगा। सिर्फ सरकार सब कुछ नहीं कर सकती।"
व्याख्या: डॉ. कलाम ने बार-बार युवाओं को यह प्रेरणा दी कि वे अपने मौलिक कर्तव्यों को समझें और देश निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएं।
🔷 सुप्रीम कोर्ट (AIIMS Students Union केस, 2001)
"मौलिक कर्तव्य, संविधान के मूल उद्देश्य – समरसता, राष्ट्रवाद और जिम्मेदारी को बनाए रखने का आधार हैं।"
व्याख्या: कोर्ट ने कहा कि भले ही मौलिक कर्तव्य प्रत्यक्ष रूप से लागू नहीं किए जा सकते, पर वे संविधान की आत्मा हैं।
🔷 स्वर्ण सिंह समिति (1976)
"यदि नागरिक अपने कर्तव्यों को नहीं निभाएंगे तो केवल अधिकारों से कोई भी राष्ट्र मजबूत नहीं बन सकता।"
व्याख्या: इसी समिति की सिफारिश पर मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया।
🔷 इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री रहते हुए)
"एक सच्चा नागरिक वह होता है जो न केवल अपने अधिकारों की मांग करता है, बल्कि अपने कर्तव्यों को निभाता है।"
व्याख्या: उन्होंने आपातकाल के दौरान कर्तव्यों को ज़रूरी बताते हुए इन्हें संविधान में शामिल किया।
निष्कर्ष:
इन कथनों से स्पष्ट है कि मौलिक कर्तव्य सिर्फ कानूनी अवधारणा नहीं हैं, बल्कि ये राष्ट्र निर्माण और सामाजिक संतुलन की रीढ़ हैं। अधिकारों के साथ कर्तव्यों का संतुलन ही भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाता है।
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