वेल्लोर सिपाही विद्रोह | Vellore Mutiny 1806 in Hindi

जब भी हम ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 'सिपाही विद्रोह' की बात करते हैं, तो हमारे ज़ेहन में सबसे पहले 1857 का महासंग्राम और मंगल पांडे का नाम आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1857 की उस महान क्रांति से लगभग 50 साल पहले ही, दक्षिण भारत की धरती पर सैनिकों ने बगावत का बिगुल फूंक दिया था? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (Vellore Mutiny 1806) की, जिसे इतिहासकारों ने 'भारत का पहला सिपाही विद्रोह' भी कहा है।

                                                                 

वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (1806)

यह विद्रोह केवल कुछ सैनिकों का गुस्सा नहीं था; यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की उन नीतियों के खिलाफ पहला संगठित और हिंसक प्रतिरोध था, जो भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं और सांस्कृतिक पहचान पर सीधा हमला कर रही थीं। 10 जुलाई 1806 की वह रात, भारतीय इतिहास का एक ऐसा पन्ना है जिसने आने वाले स्वतंत्रता संग्राम की नींव रख दी थी।

इस लेख में, हम वेल्लोर विद्रोह के कारणों, इसकी घटनाओं, और इसके ऐतिहासिक महत्व को गहराई से समझेंगे। हम यह भी जानेंगे कि क्यों यह विद्रोह 1857 की क्रांति का 'ड्रेस रिहर्सल' माना जाता है।

वेल्लोर विद्रोह 1806 क्या था? (What was Vellore Mutiny?)

वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (Vellore Sepoy Mutiny), 10 जुलाई 1806 को मद्रास प्रेसीडेंसी (आधुनिक तमिलनाडु) के वेल्लोर किले में तैनात भारतीय सिपाहियों (हिंदू और मुस्लिम) द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ किया गया एक हिंसक और खूनी विद्रोह था। यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय सैनिकों का पहला बड़ा और संगठित विद्रोह था।

यह विद्रोह कुछ ही घंटों तक चला, लेकिन इसका प्रभाव बहुत गहरा था। एक ही रात में, विद्रोहियों ने 100 से अधिक ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों को मार डाला और वेल्लोर किले पर कब्जा कर लिया। उन्होंने किले पर से यूनियन जैक (ब्रिटिश झंडा) उतारकर मैसूर सल्तनत का झंडा फहरा दिया और टीपू सुल्तान के बेटे फतेह हैदर को अपना नया शासक घोषित कर दिया।

विद्रोह की पृष्ठभूमि: क्यों सुलग रही थी असंतोष की आग?

1806 के इस विद्रोह की जड़ें कई साल पहले से ही जमनी शुरू हो गई थीं। इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे, मैसूर के 'टाइगर' यानी टीपू सुल्तान के समय में जाना होगा।

  1. टीपू सुल्तान के परिवार की उपस्थिति: 1799 में चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की हार और शहादत के बाद, अंग्रेजों ने उनके पूरे परिवार, जिसमें उनके 12 बेटे और बेटियां शामिल थे, को वेल्लोर के किले में नजरबंद कर दिया था। यह किला एक तरह से शाही कैदखाना बन गया था।
  2. सैनिकों का असंतोष: वेल्लोर किले में मद्रास इन्फैंट्री की कई बटालियनें तैनात थीं, जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय सिपाही थे। इन सैनिकों में कई ऐसे थे जो पहले टीपू सुल्तान की सेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे। उनके मन में अभी भी टीपू के परिवार के प्रति सहानुभूति और अंग्रेजों के प्रति गुस्सा था। यह गुस्सा सिर्फ भावनात्मक नहीं था, बल्कि यह कंपनी की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों का भी परिणाम था। हाल ही में समाप्त हुए द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) और राज्यों पर थोपी जा रही सहायक संधि (Subsidiary Alliance) ने पूरे दक्षिण भारत में एक अस्थिर माहौल बना दिया था।
  3. आर्थिक शोषण: सैनिकों को कम वेतन दिया जाता था और उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता था। उन्हें अपने ब्रिटिश समकक्षों की तुलना में बहुत कमतर आंका जाता था, जिससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती थी। यह वही दौर था जब अंग्रेज अपनी प्रशासनिक पकड़ मजबूत करने के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज जैसी संस्थाओं की स्थापना कर रहे थे।

टीपू के परिवार की किले में मौजूदगी ने असंतुष्ट सैनिकों के लिए एक राजनीतिक प्रतीक (Political Symbol) का काम किया। उन्हें लगता था कि अगर वे अंग्रेजों को उखाड़ फेंकें, तो वे टीपू के वंशजों को फिर से गद्दी पर बिठा सकते हैं।

विद्रोह का तत्कालीन कारण: 'नई पगड़ी' और धार्मिक अपमान

हर बड़ी क्रांति के लिए एक चिंगारी की जरूरत होती है। वेल्लोर विद्रोह का तत्कालीन कारण बना एक नया 'ड्रेस कोड', जिसे मद्रास आर्मी के कमांडर-इन-चीफ सर जॉन क्रैडॉक (Sir John Cradock) ने लागू किया था।

इस नए ड्रेस कोड में कई आपत्तिजनक बातें थीं, लेकिन सबसे विवादास्पद थी एक 'नई पगड़ी' (New Turban)

  • नई पगड़ी का डिज़ाइन: यह पगड़ी पारंपरिक भारतीय पगड़ी से अलग थी। यह दिखने में यूरोपीय हैट (Topi) जैसी लगती थी। भारतीय सैनिकों को लगा कि यह उन्हें ईसाई बनाने की एक सोची-समझी साजिश है।
  • चमड़े का कलगी (Cockade): इस नई पगड़ी पर एक चमड़े की कलगी (छोटा पंख जैसा निशान) लगाना अनिवार्य कर दिया गया था। यह चमड़ा किस जानवर का है, इसे लेकर भ्रम फैल गया। हिंदू सैनिकों को गाय की खाल का और मुस्लिम सैनिकों को सुअर की खाल का संदेह हुआ। यह दोनों ही धर्मों के लिए घोर अपमानजनक था।
  • धार्मिक चिह्नों पर पाबंदी: नए नियमों के तहत, हिंदू सिपाहियों को माथे पर तिलक या विभूति लगाने से मना कर दिया गया। इसी तरह, मुस्लिम सिपाहियों को अपनी दाढ़ी एक निश्चित आकार में कटवाने और मूंछें साफ रखने का आदेश दिया गया।

यह आदेश भारतीय सैनिकों की धार्मिक आस्था और उनकी सदियों पुरानी परंपराओं पर सीधा प्रहार था। सिपाहियों ने इसे अपनी 'जात और धर्म' को भ्रष्ट करने का प्रयास माना। जब कुछ सैनिकों ने इस नई पगड़ी को पहनने से इनकार किया, तो उन्हें कड़ी सजा दी गई। उन्हें कोड़े मारे गए और सेना से बर्खास्त कर दिया गया। इस घटना ने आग में घी का काम किया और विद्रोह की योजना बनने लगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1857 के विद्रोह का तत्कालीन कारण भी 'चर्बी वाले कारतूस' थे, जो गाय और सुअर की चर्बी से बने होने के संदेह पर आधारित थे। यह स्पष्ट दिखाता है कि अंग्रेजों ने 1806 की अपनी गलती से कोई सबक नहीं सीखा था।

10 जुलाई 1806: विद्रोह की वो खूनी रात

10 जुलाई 1806 की आधी रात को विद्रोह की शुरुआत हुई। तारीख भी सोच-समझकर चुनी गई थी, क्योंकि उस दिन किले के कई ब्रिटिश अधिकारी पास के शहर में एक शादी के जश्न में गए हुए थे।

  1. हमले की शुरुआत: रात करीब 2 बजे, भारतीय सिपाहियों ने एक साथ अपने ब्रिटिश अधिकारियों के क्वार्टरों पर हमला बोल दिया। वे सो रहे अधिकारियों को मारने लगे। किले के संतरी भी विद्रोह में शामिल हो गए।
  2. किले पर कब्ज़ा: कुछ ही घंटों के भीतर, विद्रोहियों ने किले के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया। उन्होंने शस्त्रागार (Armoury) को अपने नियंत्रण में ले लिया। किले के कमांडर, कर्नल फैनकोर्ट (Col. Fancourt) सहित 14 ब्रिटिश अधिकारी और 100 से अधिक ब्रिटिश सैनिक (कुल मिलाकर लगभग 115-120) मार डाले गए।
  3. आज़ादी का ऐलान: सुबह होते ही, विद्रोहियों ने किले पर से ब्रिटिश झंडा 'यूनियन जैक' उतार फेंका और उसकी जगह मैसूर सल्तनत का शाही झंडा (बाघ का निशान वाला) फहरा दिया।
  4. टीपू के बेटे की ताजपोशी: सिपाहियों ने टीपू सुल्तान के दूसरे बेटे, फतेह हैदर (Fateh Hyder) को अपना नया सुल्तान घोषित कर दिया और "फतेह हैदर बादशाह" के नारे लगाए। यह स्पष्ट रूप से एक सैन्य विद्रोह से बढ़कर एक राजनीतिक क्रांति का प्रयास था।

अंग्रेजों का क्रूर दमन और विद्रोह का अंत

विद्रोही किले पर कब्ज़ा करने में तो सफल रहे, लेकिन वे इस पर नियंत्रण बनाए नहीं रख सके। किले से बचकर निकले एक ब्रिटिश अधिकारी, मेजर कूट्स (Major Cootes) ने पास के आरकॉट (Arcot) में मौजूद ब्रिटिश छावनी को इसकी सूचना दे दी।

सूचना मिलते ही, आरकॉट से कर्नल गिलेस्पी (Colonel Gillespie) के नेतृत्व में एक विशाल ब्रिटिश सेना तोपों के साथ वेल्लोर के लिए रवाना हो गई।

  • क्रूर जवाबी कार्रवाई: सुबह 9 बजे तक, कर्नल गिलेस्पी की सेना किले तक पहुँच गई। उन्होंने किले के फाटकों को तोपों से उड़ा दिया और अंदर मौजूद विद्रोहियों पर अंधाधुंध हमला कर दिया।
  • सैकड़ों का कत्लेआम: विद्रोहियों के पास बेहतर नेतृत्व और तोपों का जवाब नहीं था। ब्रिटिश सेना ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं। एक ही दिन में 800 से 1000 भारतीय सिपाही या तो युद्ध में मारे गए या उन्हें पकड़कर मौत के घाट उतार दिया गया।
  • सजा-ए-मौत: पकड़े गए कई विद्रोहियों को बिना किसी मुकदमे के दीवार के सामने खड़ा करके तोप से उड़ा दिया गया या फांसी दे दी गई। यह दमन 1857 के दमन से किसी भी मायने में कम क्रूर नहीं था।

इस तरह, भारत का पहला सिपाही विद्रोह, जो इतनी बहादुरी से शुरू हुआ था, 24 घंटे से भी कम समय में क्रूरतापूर्वक कुचल दिया गया।

वेल्लोर विद्रोह की असफलता के मुख्य कारण

वेल्लोर का विद्रोह भले ही साहसिक था, लेकिन यह कई कारणों से असफल रहा:

  1. नेतृत्व की कमी: विद्रोहियों के पास कर्नल गिलेस्पी जैसा कोई निर्णायक और अनुभवी सैन्य नेता नहीं था। टीपू के बेटे केवल नाममात्र के नेता थे, उनमें सैन्य नेतृत्व का अभाव था।
  2. संगठन का अभाव: विद्रोह की योजना तो बनी, लेकिन आगे क्या करना है (Post-revolt plan), इसकी कोई स्पष्ट रणनीति नहीं थी।
  3. बाहरी समर्थन न मिलना: यह विद्रोह वेल्लोर किले तक ही सीमित रह गया। इसे बाहर की अन्य छावनियों या आम जनता का समर्थन नहीं मिल सका।
  4. अंग्रेजों की त्वरित कार्रवाई: कर्नल गिलेस्पी का बहुत तेज़ी से आरकॉट से वेल्लोर पहुँचना विद्रोहियों के लिए घातक साबित हुआ। उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिला।

वेल्लोर विद्रोह का महत्व और परिणाम (Significance of Vellore Mutiny)

भले ही यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन वेल्लोर विद्रोह का महत्व भारतीय इतिहास में बहुत अधिक है।

  • पहली चेतावनी: यह ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए पहली स्पष्ट चेतावनी थी कि भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को नज़रअंदाज़ करना कितना खतरनाक हो सकता है।
  • नीतियों में बदलाव: विद्रोह की जाँच के बाद, विवादास्पद 'नई पगड़ी' और ड्रेस कोड के आदेशों को तुरंत वापस ले लिया गया।
  • अधिकारियों पर कार्रवाई: इस विद्रोह के लिए जिम्मेदार माने गए मद्रास के गवर्नर लॉर्ड विलियम बेंटिंक (जो बाद में भारत के गवर्नर जनरल भी बने) और कमांडर-इन-चीफ सर जॉन क्रैडॉक, दोनों को उनके पदों से हटाकर वापस इंग्लैंड बुला लिया गया।
  • टीपू के परिवार का स्थानांतरण: अंग्रेजों को अपनी गलती का एहसास हुआ कि टीपू के परिवार को वेल्लोर में रखना खतरनाक था। उन्हें तुरंत वहां से हटाकर कलकत्ता (कोलकाता) भेज दिया गया, ताकि वे फिर से किसी विद्रोह का केंद्र न बन सकें।
  • 1857 की प्रेरणा: इसने भविष्य के विद्रोहों के लिए एक मिसाल कायम की। यह साबित हो गया कि संगठित होने पर भारतीय सिपाही ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दे सकते हैं।

क्या वेल्लोर विद्रोह 1857 की क्रांति की प्रस्तावना थी?

हाँ, बिलकुल। वेल्लोर विद्रोह (1806) और 1857 के महासंग्राम के बीच कई आश्चर्यजनक समानताएं हैं। यह दोनों ही विद्रोह 1800 से 1850 तक की राजनीतिक घटनाओं के बीच हुए सबसे बड़े सैन्य प्रतिरोध थे, जिन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय सिपाही सैन्य अनुशासन को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से ऊपर नहीं रखते थे।

समानता का बिंदु वेल्लोर विद्रोह (1806) 1857 का महासंग्राम
तत्कालीन कारण 'नई पगड़ी' और चमड़े की कलगी (धार्मिक अपमान) 'चर्बी वाले कारतूस' (गाय/सुअर की चर्बी से धार्मिक अपमान)
धार्मिक हस्तक्षेप तिलक, दाढ़ी और धार्मिक चिह्नों पर पाबंदी ईसाई धर्म के प्रचार और 'धर्म भ्रष्ट' होने का डर
राजनीतिक प्रतीक टीपू सुल्तान के बेटे (फतेह हैदर) मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र
परिणाम ईस्ट इंडिया कंपनी ने नीतियां बदलीं (अस्थायी) ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त, ब्रिटिश क्राउन का राज शुरू

वेल्लोर को 1857 की क्रांति का 'ड्रेस रिहर्सल' कहना गलत नहीं होगा। दोनों ही विद्रोहों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय सिपाही सैन्य अनुशासन को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से ऊपर नहीं रखते थे।

निष्कर्ष

वेल्लोर का सिपाही विद्रोह 1806, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक स्वर्णिम, यद्यपि अल्पज्ञात, अध्याय है। यह सिर्फ एक 'पगड़ी' के लिए हुआ विद्रोह नहीं था; यह अपनी 'पहचान', 'धर्म' और 'स्वाभिमान' के लिए लड़ी गई लड़ाई थी। यह पहला मौका था जब हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों ने कंधे से कंधा मिलाकर 'फिरंगी' सत्ता के खिलाफ हथियार उठाए थे।

भले ही इस विद्रोह को क्रूरता से कुचल दिया गया, लेकिन इसकी चिंगारी बुझी नहीं। यह चिंगारी 51 वर्षों तक सुलगती रही और 1857 में एक ज्वालामुखी बनकर फटी, जिसने अंततः ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी। वेल्लोर के वे शहीद सिपाही, जिन्होंने 1857 के नायकों से बहुत पहले शहादत दी, वे भी हमारे स्वतंत्रता संग्राम के उतने ही सम्मानित नायक हैं।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: वेल्लोर का सिपाही विद्रोह कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: वेल्लोर का सिपाही विद्रोह 10 जुलाई 1806 को मद्रास प्रेसीडेंसी (वर्तमान तमिलनाडु) में स्थित वेल्लोर के किले में हुआ था।

प्रश्न 2: वेल्लोर विद्रोह का मुख्य और तत्कालीन कारण क्या था?

उत्तर: विद्रोह का मुख्य कारण भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं का अपमान था। तत्कालीन कारण एक नया 'ड्रेस कोड' था, जिसमें एक नई 'पगड़ी' पहनना अनिवार्य किया गया था, जो ईसाई हैट जैसी दिखती थी और उस पर संदिग्ध जानवर (गाय/सुअर) के चमड़े की कलगी लगी थी। साथ ही, हिंदुओं को तिलक लगाने और मुस्लिमों को दाढ़ी रखने से भी रोका गया था।

प्रश्न 3: वेल्लोर विद्रोह का नेता कौन था?

उत्तर: इस विद्रोह का कोई एक स्पष्ट सैन्य नेता नहीं था, जो इसकी असफलता का एक कारण भी बना। हालांकि, विद्रोहियों ने टीपू सुल्तान के बेटे 'फतेह हैदर' को अपना राजनीतिक नेता और सुल्तान घोषित किया था।

प्रश्न 4: क्या वेल्लोर विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जा सकता है?

उत्तर: कई इतिहासकार इसे 'भारत का पहला सिपाही विद्रोह' मानते हैं। इसे 'स्वतंत्रता संग्राम' कहना इस पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे परिभाषित करते हैं। यह 1857 की तरह व्यापक नहीं था, लेकिन इसमें ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और भारतीय शासक (टीपू के बेटे) को फिर से स्थापित करने का स्पष्ट इरादा था, जो इसे स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रारंभिक प्रयास बनाता है।

प्रश्न 5: वेल्लोर विद्रोह का दमन किसने किया?

उत्तर: वेल्लोर विद्रोह का क्रूरतापूर्वक दमन आरकॉट से आई ब्रिटिश सेना ने किया, जिसका नेतृत्व कर्नल रोलो गिलेस्पी (Colonel Rollo Gillespie) कर रहा था।

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