नेहरू-नून समझौता 1958 | India-Pak Border Dispute

नेहरू-नून समझौता (Nehru-Noon Agreement) भारतीय इतिहास का एक ऐसा महत्वपूर्ण अध्याय है जिसने न केवल दशकों पुराने भारत-पाकिस्तान सीमा विवादों को सुलझाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया, बल्कि भारतीय संविधान की शक्ति और सर्वोच्चता की भी अंतिम परीक्षा ली। यह समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फिरोज खान नून के बीच हुआ था। यह घटना सीमांकन के कूटनीतिक प्रयास और उसके बाद संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता के कारण भारतीय राजव्यवस्था में मील का पत्थर साबित हुई।

नेहरू-नून समझौता (1958)| भारत-पाक सीमा विवाद

📑 विषय सूची (Table of Contents)

  1. पृष्ठभूमि: समझौते की अनिवार्यता
  2. नेहरू-नून समझौते के मुख्य बिंदु और शर्तें
  3. बेरूबारी यूनियन विवाद: एक संवैधानिक कसौटी
  4. सुप्रीम कोर्ट की राय: अनुच्छेद 143 और 9वां संशोधन
  5. समझौते का दूरगामी प्रभाव और महत्व
  6. राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और आलोचना
  7. निष्कर्ष
  8. FAQs - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

📅 पृष्ठभूमि: समझौते की अनिवार्यता (The Genesis)

भारत और पाकिस्तान का विभाजन 1947 में हुआ, और सीमा का निर्धारण सर सिरिल रेडक्लिफ द्वारा खींची गई विवादित रेडक्लिफ रेखा के आधार पर किया गया। जल्दबाजी में किए गए इस सीमांकन के कारण कई क्षेत्रों में अस्पष्टता और जटिलताएँ रह गईं, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच सीमा विवाद (Border Disputes) तुरंत शुरू हो गए।

जटिलताएँ: सबसे बड़ी समस्या एनक्लेव (Enclaves - एक देश का क्षेत्र जो पूरी तरह से दूसरे देश की सीमा के भीतर घिरा हो) और एक्सक्लेव (Exclaves) की थी, जिनमें पश्चिम बंगाल, असम और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) की सीमाएँ विशेष रूप से प्रभावित थीं।

मुख्य उद्देश्य: नेहरू-नून समझौते का प्राथमिक उद्देश्य इन अस्पष्ट और विवादित सीमाओं को शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से स्पष्ट करना था, ताकि इस संवेदनशील क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता लाई जा सके। यह समझौता 10 सितंबर 1958 को नई दिल्ली में संपन्न हुआ।

🗺️ नेहरू-नून समझौते के मुख्य बिंदु और शर्तें

इस समझौते ने दोनों देशों के बीच के कई लंबित सीमा विवादों को हल करने के लिए एक रूपरेखा तैयार की। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे:

A. सीमा सीमांकन और एन्क्लेवों का आदान-प्रदान (Enclaves Exchange)

  • बेरूबारी यूनियन (Berubari Union): पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में स्थित बेरूबारी यूनियन संख्या 12 को दो भागों में विभाजित करने का निर्णय लिया गया। इसका दक्षिणी आधा भाग भारत द्वारा पाकिस्तान (पूर्वी पाकिस्तान) को सौंपना तय हुआ, जबकि उत्तरी आधा भाग भारत के पास रहा।
  • एन्क्लेव/एक्सक्लेव का आदान-प्रदान: दोनों देशों ने सीमा के पास स्थित एक-दूसरे के एन्क्लेव्स (छोटा क्षेत्र) को **आपसी सहमति** से एक-दूसरे को सौंपने पर सहमति व्यक्त की। यह कदम स्थानीय प्रशासनिक जटिलताओं को कम करने के लिए उठाया गया था।
  • अन्य विवादित क्षेत्र: असम-पूर्वी पाकिस्तान और त्रिपुरा-पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से जुड़े अन्य छोटे-मोटे सीमा विवादों को भी सुलझाने के लिए सहमति बनी।

B. शांतिपूर्ण समाधान की प्रतिबद्धता

समझौते में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि भविष्य में उत्पन्न होने वाले किसी भी सीमा विवाद को हिंसा के बजाय संयुक्त भारत-पाकिस्तान सीमा आयोग की स्थापना और शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से हल किया जाएगा।

⚖️ बेरूबारी यूनियन विवाद: एक संवैधानिक कसौटी

बेरूबारी यूनियन का मुद्दा इस समझौते का केंद्र बिंदु था और इसने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संकट पैदा किया। यह विवाद केवल भौगोलिक नहीं था, बल्कि जनसंख्या, प्रशासन और भू-राजनीति के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील था।

1. सुप्रीम कोर्ट की राय: अनुच्छेद 143 (Article 143)

समझौते के विरोध के चलते, राष्ट्रपति **डॉ. राजेंद्र प्रसाद** ने भारत सरकार की शक्ति की जाँच करने के लिए, **संविधान के अनुच्छेद 143 (राष्ट्रपति की सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने की शक्ति)** के तहत, इस मामले को **सर्वोच्च न्यायालय** के पास भेजा।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या भारत सरकार किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते को लागू करने के लिए भारतीय क्षेत्र का कोई हिस्सा किसी विदेशी देश को **केवल एक कार्यकारी निर्णय** के माध्यम से सौंप सकती है, या इसके लिए **संवैधानिक संशोधन** की आवश्यकता है?

2. सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय (1960)

सुप्रीम कोर्ट ने 1960 में अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया कि:

"भारत के किसी भी हिस्से को किसी विदेशी राज्य को सौंपना, भारत की क्षेत्रीय अखंडता को प्रभावित करता है। इसलिए, ऐसा कोई भी कार्य करने के लिए संसद की सामान्य विधायी शक्ति पर्याप्त नहीं है। इसके लिए अनिवार्य रूप से संविधान में संशोधन (Constitutional Amendment) करना होगा।"

इंटरलिंक: भारत की क्षेत्रीय अखंडता और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से संबंधित एक और महत्वपूर्ण फैसला जानने के लिए पढ़ें: केशवानंद भारती केस और मूल संरचना सिद्धांत का महत्व

3. नौवां संशोधन अधिनियम, 1960 (The 9th Amendment)

सुप्रीम कोर्ट की सलाह का पालन करते हुए, भारत सरकार ने तत्काल **9वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1960** पारित किया।

  • प्रभाव: इस संशोधन ने संविधान की **पहली अनुसूची** (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची) में बदलाव किया, जिससे बेरूबारी यूनियन के निर्धारित भाग को कानूनी रूप से पूर्वी पाकिस्तान को सौंपने का रास्ता साफ हो गया।
  • सर्वोच्चता की स्थापना: इस घटना ने भारत में संवैधानिक सर्वोच्चता (Constitutional Supremacy) को निर्णायक रूप से स्थापित किया।

इंटरलिंक: भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को विस्तार से समझने के लिए पढ़ें: भारतीय संविधान संशोधन और भारतीय संविधान का 9वां संशोधन

🚀 समझौते का दूरगामी प्रभाव और महत्व

नेहरू-नून समझौता भारतीय राजनीतिक और कानूनी इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ गया:

  • सीमा विवादों का समाधान: इसने कई **अपरिभाषित सीमाओं** को स्पष्ट किया और **भारत-पाक सीमा** पर तनाव को कम करने में सहायता की।
  • कानूनी नज़ीर (Legal Precedent): बेरूबारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय **अनुच्छेद 3** और **अनुच्छेद 368** की शक्तियों की सीमा को स्पष्ट करने वाला एक महत्वपूर्ण कानूनी नज़ीर बन गया।
  • दीर्घकालिक सीमा सुधार: बाद में, **2015** में, भारत और बांग्लादेश ने इस समझौते के कई लंबित पहलुओं को **100वें संविधान संशोधन** के माध्यम से पूरी तरह से लागू किया।

📢 राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और आलोचना

यह समझौता राजनीतिक रूप से काफी विवादास्पद रहा:

पंडित जवाहरलाल नेहरू (समर्थन में): "सीमा विवादों को हल करने के लिए हमें न्यायसंगत, व्यावहारिक और शांतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। स्थायी शांति के लिए कुछ हिस्सों का आदान-प्रदान आवश्यक है।"

डॉ. राम मनोहर लोहिया (आलोचना में): "देश का एक भाग किसी विदेशी को देना राष्ट्रीय अस्मिता और संप्रभुता के विरुद्ध है।"

💡 निष्कर्ष: कूटनीति, संविधान और सर्वोच्चता

नेहरू-नून समझौता (1958) **भारत और पाकिस्तान** के बीच सीमा विवादों को सुलझाने का एक शांतिपूर्ण और न्यायसंगत प्रयास था। यह घटना भारत के **संवैधानिक इतिहास** और **न्यायिक सक्रियता** दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने यह स्थापित किया कि देश की क्षेत्रीय संप्रभुता को प्रभावित करने वाला कोई भी कदम केवल **संवैधानिक संशोधन** के माध्यम से ही संभव है।


❓ FAQs - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न (Question) उत्तर (Answer)
नेहरू-नून समझौता कब हुआ? यह समझौता 10 सितंबर 1958 को हुआ था।
इस समझौते को लागू करने के लिए कौन सा संशोधन किया गया? भारतीय संविधान में 9वां संशोधन अधिनियम, 1960 किया गया।
बेरूबारी यूनियन क्या है? यह पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले का एक विवादित सीमा क्षेत्र था।
सुप्रीम कोर्ट ने किस अनुच्छेद के तहत इस मामले पर अपनी राय दी? सुप्रीम कोर्ट ने **संविधान के अनुच्छेद 143** के तहत अपनी राय दी।

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